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(४) श्रोदशवैकालिकनियुक्ति: ]
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॥ ३ ॥ अथ तृतीयाध्ययन नियुक्तिः ॥ नामंठवणादविए खेत्ते काले पहाण पइभावे । एएसि महंताणं पडिवक्खे खुड्डया होंति ॥७८ ॥
पइखुड्डएण पगयं आयारस्स उ चउक्कनिक्खेवो। 5 नामंठवणादविए भावायारे य बोद्धव्वे ॥७९ ।।
नामणधावणवासण-सिक्खावणसुकरणाविरोहीणि । दव्वाणि जाणि लोए दवायारं विधाणाहि ॥ १८० ॥ दसणनाणचरित्ते तवआयारे य वोरियायारे। एसो भावायारो पंचविहो होइ नायवो ।। ८१॥ निस्संकिय निक्कंखिय निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी अ। उवव्हथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ठ ॥ ४२ ॥ अइसेसइड्डियायरिय-वाइधम्मकहीखमगनेमित्ती।। विज्जारायागणसंमया य तित्थं पभाविति ।। ८३ ।।
काले विणए बहुमाणे उपहाणे तह य अनिण्हवणे । 15 वंजणअस्थतदुभए अट्टविहो नाणमायारो ।। ८४ ।।
पणिहाणजोगजुत्तो पंचहि समिई हि तिहि य गुत्तीहि । एस चरित्तायारो अविहो होइ नायव्वो ।। ८५ ।। बारस विहम्मिवि तवे सब्भितरबाहिरे कुसलदिखें।
प्रगिलाइ अणाजीवी नायव्वो सो तवायारो ।। ८६ ।। 20 अणिमूहियबलविरियो परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो।
जंजइ प्र जहाथामं नायवो वीरियायारो ।। ८७ ।।
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