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[ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः
संकाए चउभंगो दोसुवि गहणे य भुंजणे लग्गो । जं संकियमावतो पणवीसा चरिमए सुद्धो ॥ २१ ॥ उग्गमदोसा सोलस आहाकम्माद एसणादोसा ।
नव मक्खियाइ एए पणवीसा चरिमए सुद्धो ।। २२ ।। 5 छउमत्थो सुयनाणी गवेसए ( उवउत्तो) उज्जुओ पयत्तेणं । आवन्नो पणवोसं सुयनाणपमाणओ सुद्धो ।। २३ ।। ओहो ओवउत्तो सुयनाणी जहवि गिण्हइ असुद्धं । तं केवलीवि भुजइ अपमाण सुयं भवे इहरा ।। २४ ।। सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स । 10 मोक्खस्सऽविय अभावे दिक्खपवित्तो निरत्था उ ।। २५ ।। किंतु (ति) हखद्धा भिक्खा दिज्जइ न य तरह पुच्छउ हिरिमं । इअ संकाए घेत्तु तं भुजइ संकिओ चेव ।। २६ ।। हियएण संकिएणं गहिआ अन्नेण सोहिया सा य ।
पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकिओ भुजे ।। २७ ।। 15 जारिसया च्चिय लद्धा खद्धाभिवखा मए अमुयगेहे । अन्नेहिवि तारिसिया बियडंत निसामए तइए ।। २८ ।। जइ संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं । निस्संकमेसियंति य प्रणेसणिज्जंपि निद्दोसं ॥ २६ ॥ अविसुद्ध परिणामो एगयरे अवडिओ य पक्खमि । 20 एसिपि कुणइ सि अणेसिमेसि विसुद्धो उ ।। ५३० ।। दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ श्रच्चितं । सच्चित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु ॥ ३१ ॥
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