SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः संकाए चउभंगो दोसुवि गहणे य भुंजणे लग्गो । जं संकियमावतो पणवीसा चरिमए सुद्धो ॥ २१ ॥ उग्गमदोसा सोलस आहाकम्माद एसणादोसा । नव मक्खियाइ एए पणवीसा चरिमए सुद्धो ।। २२ ।। 5 छउमत्थो सुयनाणी गवेसए ( उवउत्तो) उज्जुओ पयत्तेणं । आवन्नो पणवोसं सुयनाणपमाणओ सुद्धो ।। २३ ।। ओहो ओवउत्तो सुयनाणी जहवि गिण्हइ असुद्धं । तं केवलीवि भुजइ अपमाण सुयं भवे इहरा ।। २४ ।। सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स । 10 मोक्खस्सऽविय अभावे दिक्खपवित्तो निरत्था उ ।। २५ ।। किंतु (ति) हखद्धा भिक्खा दिज्जइ न य तरह पुच्छउ हिरिमं । इअ संकाए घेत्तु तं भुजइ संकिओ चेव ।। २६ ।। हियएण संकिएणं गहिआ अन्नेण सोहिया सा य । पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकिओ भुजे ।। २७ ।। 15 जारिसया च्चिय लद्धा खद्धाभिवखा मए अमुयगेहे । अन्नेहिवि तारिसिया बियडंत निसामए तइए ।। २८ ।। जइ संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं । निस्संकमेसियंति य प्रणेसणिज्जंपि निद्दोसं ॥ २६ ॥ अविसुद्ध परिणामो एगयरे अवडिओ य पक्खमि । 20 एसिपि कुणइ सि अणेसिमेसि विसुद्धो उ ।। ५३० ।। दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ श्रच्चितं । सच्चित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु ॥ ३१ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy