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________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३१३ कि अद्धिइत्ति पुच्छा सवित्तिणी गम्भिणित्ति से देवी। गब्भाहाणं तुज्झवि करोमि मा प्रद्धिई कुणसु ।। ५१० ।। जइवि सुओ मे होही तहवि कणिटोति इयरो जुवराया। देइ परिसाडणं से नाए य पोस पत्थारो ॥ ११ ।। संखडिकरणे काया कामपवित्ति च कुणइ एगत्थ । एगत्थुड्डाहाई जज्जियभोगंत रायं च ।। १२ ।। एवं तु गविट्ठस्सा उग्गम उप्पायणा-विसुद्धस्स । गहणविसोहि विसुद्धस्स होइ गहणं तु पिंडस्स ।। १३ ।। उपायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए वियाणाहि । 10 गहणेसणाइ दोसे प्रायपरसमुट्ठिए वोच्छं ।। १४ ॥ दोन्नि उ साहुसमुत्था संकिय तह भावनोऽपरिणयं च । सेसा अवि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण ।। १५ ।। नाम ठवणा दविए भावे गहणेसणा मुणेयव्वा । दवे वानरहं भावंमि य दस पया हुँति ।। १६ ।। 15 परिसडिय-पंडुपत्तं वणसंडं दट्ट अन्नहिं पेसे। जूहबई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे ॥ १७ ।। सयमेवासोएउं जूहबई तं वर्ण समतेण । वियरइ तेसि पयारं चरिऊण य तो दहं गच्छे ।। १८ ।। ओयरंतं पयं दट्ट, नीहरंतं न दीसई । 20 नालेण पियह पाणीयं, नेम निक्कारणो दहो ॥ १९ ॥ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मोसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥ ५२० ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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