________________
(३)श्रीपिण्डनियुक्तिः ]
[ ३१५
पुढवी आउ वणस्सइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं होइ । अच्चित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ ।। ३२ ।। सुक्केण सरक्खेणं मक्खिय-मोल्लेण पुढविकाएण । सव्वंपि मक्खियं तं एत्तो आउंमि वोच्छामि ।। ३३ ।। पुरपच्छ कम्म ससिणिद्धदउल्ले चउरो आउभेयाओ। उक्किट्ठरसालित्तं परित्तऽणंतं महिरुहेसु ॥ ३४ ।। सेसेहि काएहि तीहिवि तेऊसमीरणतसेहिं । सच्चित्तं मीसं वा न मक्खितं अस्थि उल्लं वा ॥ ३५ ॥
सच्चित्तमक्खियंमी हत्थे मत्ते य होइ च उभंगो। 10 आइतिए पडिसेहो चरिम भंगे अणुन्नाओ ।। ३६ ।।
अच्चित्तमक्खियंमि उ च उसुवि भंगेसु होइ भयरणा उ । अगरहिएण उ गहणं पडिसेहो गरहिए होइ ।। ३७ ।। संसज्जिमेहिं वज्जं अगरहिएहिपि गोर सदवेहि । महुघयतेल्लगुलेहि य मा मच्छिपिपीलियाघाप्रो ।। ३८ ।। मंसवस-सोणियासव लोए वा गरहिएहि वि वज्जेज्जा । उभप्रोऽवि गरहिएहि मुत्तुच्चारेहि छित्रापि ।। ३६ ।। सच्चित्त मीसएस दुविहं काएसु होइ निक्खित्तं । एक्केक्कं तं दुविहं अणंतर परंपरं चेव ॥ ५४० ।।
पुढवीआउक्काए तेऊवाउ-वणस्स इ-तसाणं । 20 एक्केक्क दुहाऽणंतर-परंपरगणंमि सत्तविहा ।। ४१ ।।
सच्चित्त पुढविकाए सचितो चेव पुढवि-निखित्तो। आऊते उवणस्सइ-समीरण-तसेसु एमेव ।। ४२ ॥
15
में
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org