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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः
एमेव सेसयाणवि निक्खेवो होइ जीव (काय) का ( निका)एसु। एक्केवको सट्टाणे परठाणे पंच पंचेव ।। ४३ ॥ एमेव मीसएसुवि मोसाण सचेयणेसु निक्खेवो । मीसाणं मीसेसु य दोण्हंपि य होइऽचित्तेसु ।। ४४ । जत्थ उ सचित्तमीसे च उभंगो तत्थ चउसुवि अगिझं । तं तु अणंतर इयरं परित्तऽणंतं च वरणकाए ।। ४५ ।। अहव ण सचित्तमीसो उ एगओ एगो उ अच्चित्तो। एत्थं चउक्कभेओ तत्थाइतिए कहा नस्थि ॥ ४६ ।।
जं पुण अचित-दव्वं निक्खिप्पइ चेयणेसु मोसेसु । 10 तहिं मग्गरणा उ इणमो अणंतरपरंपरा होइ ।। ४७ ।।
प्रोगाहिमायणंतर परंपरं पिढरगाइ पुढवीए । नवणीयाइ अणंतर परंपरं नावमाईसु ।। ४८ ।। विज्झाय-मुम्मुरिगालमेव अप्पत्तपत्त-समजाले । वोक्कते (लोणे) सत्तदुर्ग जंतोलित्ते य जयणाए ॥ ४९ ॥ विज्झाउत्ति न दीसइ अग्गी दीसेइ इंधणे छूढे । आपिंगल प्रगणिकणा मुम्मुर निज्जाल इंगाले ।। ५५० ।। अप्पत्ता उ चउत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता। छ? पुण कण्णसमा जाला समइच्छिया चरिमे ॥ ५१ ॥
पासोलित्त-कडाहे परिसाडी नत्थि तंपि य विसालं।। 20 सोऽवि य अचिरच्छूढो उच्छुरसो नाइउसिणो य ।। ५२ ।।
उसिणोदगंपि घेप्पड गुडरसपरिणामियं अणच्चुसिणं । जं च अगट्ठियकन्नं घट्टियपडणंमि मा अग्गी ॥ ५३ ।।
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