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(३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ]
[ ३१७ पासोलित्त कडाहेऽनच्चुसिणे अपरिसाडऽघट्टते । सोलस भंगविगप्पा पढमेऽणुना न सेसेसु ।। ५४ ।। पयसमदुग-प्रभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा । एगंतरियं लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामेसु ।। ५५ ।। दुविहविराहण उसिणे छड्डण हाणी य भाणभेो य । याउक्खित्ताणंतरपरंपरा पप्पडिय वस्थी ।। ५६ ।। हरियाइ अणंतरिया परंपरं पिढरगाइसु वर्णमि । पूपाइ पिट्ठऽणंतर भरए कुउबाइसू इयरा ।। ५७ ।।
सच्चित्ते अच्चित्ते मोसग पिहयंमि होइ चउभंगो। 10 प्राइतिगे पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा उ ।। ५८ ।।
जह चेव उ निक्खत्ते संजोगा चेव होंति भंगा य । एमेव य पिहियंमिवि नाणत्तमिणं तइयभंगे ॥ ५९॥ अंगार धूवियाई अर्णतरो संतरो सरावाई ।
तत्थेव प्रइर वाऊ परंपरं बस्थिणा पिहिए ॥ ५६० ।। 15 अइरं फलाइपिहितं वर्णमि इयरं तु छब्ब-पिठराई।
कच्छव-संचाराई अणंतराणंतरे छ? ॥६१ ।। गुरु गुरुणा गुरु लहुणा लहुयं गुरुएण दोऽवि लहुयाई। अच्चित्तणवि पिहिए चउभंगो दोसु अग्गेज्झ ।। ६२ ।।
सच्चित्ते अच्चित्ते मीसा साहारणे य च उभंगो। 20 आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा उ ।। ६३ ।।
जह चेव उ निक्खित्ते संजोगा चेव होंति भंगा य । तह चेव उ साहरणे नाणत्तमिणं तइयभंगे ।। ६४ ।।
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