________________
(२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ]
[ २२६
भावासनो समणुन्न अन्नप्रोसन्नसड्डवेज्जघरे । सल्लपरूवण वेज्जो तत्थेव परोहडे वावि ॥ १७ ।। एएसिं असईए रायपहे दो घराण वा मज्झे ।
हत्थं हत्थं मुत्तुं मज्झे सो नरवइस्स भवे ॥ २७ ॥ प्र० 5 उग्गह काईयवज्जं छंडण ववहारु लन्मए तत्थ ।
गारविए पन्नवणा तव चेव अणुग्गहो एस ॥१८ ।। जइ दोण्ह एग भिक्खा न य वेल पहुपए तम्रो एगो। सम्वेवि अत्तलामी पडिसे हमणुन्नपियधम्मे ॥ १६ ॥
प्रमणुन अन्नसंजोइया उ सब्वेवि णेच्छण विवेगो। 10 बहुगुणतदेकदोसे एसणबलवं नउ विगिचे ॥ ४२० ।।
इत्थीगहणे धम्मं कहेइ वयठवण गुरुसमीवंमि । इह चेवोवर रज्जू भएण मोहोचसम तीए ॥ २१ ॥ साणा गोणा इयरे परिहरऽणामोग कुड्डकडनीसा। वारइ य दंडएणं वारावे वा अगारेहि ॥२२ ।। पडिपोयगेहवज्जण अणमोगपविट्ठ बोलनिक्खमणं । मज्झे तिण्ह घराणं उवओग करेउ गेण्हेज्जा ॥ २३ ॥ वेंटल पुट्ठो न याणे आयनातीणि वज्जए ठाणे । सुद्धं गवेस उंछ पंचऽइयारे परिहरंतो ॥ २४ ।।
जहन्नेण चोलपट्टो वीसरणालू गहाय गच्छेज्जा। 20 ऊस्सग्ग काउ गमणे मत्तयऽगहणे इमे दोसा ।। २५ ।।
आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लह सहसलाभे । संसत्तभत्तपाणे मत्तगगहणं अणुनायं ।। ४२६ ।।
15
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org