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(२) श्रीमती :: ओघनियुक्तिः ।
कक्खडखेत्तचुओ वा दुब्बल प्रद्धाण पविसमाणो वा । खीराइगहण दीहुँ बहुं च उवमा अयकडिल्ले ।। ६२ ।। जे चेव पडिच्छणदीह-खद्धसुवणेसु वणिमा दोसा। ते चेव सपडिवखा होंति इहं कारणज्जाए ।। ९३ ।। उग्गमदोसाईणं कहणा उप्पायणेसणाणं च । तत्थ उ नत्थी सुन्ने बाहिं सागार कालदुवे ।। १४ ।। दिट्ठमदिट्ठा दुविहा नायगुणा चेव हुँति अनाया । अहिट्ठावि दुविहा सुअमसुप्र पसत्थमपसत्था ।। ६५ ॥
दिट्ठा व समोसरणो न य नायगुणा हवेज्ज ते समणा । 10 सुप्रगुण पसत्थ इयरे समणुनिअरे य सव्वेवि ॥ ९६ ।।
जइ सुद्धा संवासो होई प्रसुद्धाण दुविह पडिलेहा । अमितरबाहिरिमा दुविहा दवे अ भावे प्र ॥९७ ॥ घट्ठाइतलिअदंडग पाउय संलग्गिरी अणुवओगो।
दिसि पवणगामसूरिअ वितहं उच्छोलणा दवे ॥९८ ।। 15 विकहा हसिउग्गाइय भिन्नकहाचक्कवालछलिअकहा।
माणुसतिरिप्रावाए दायणप्रायररगया भावे ।। ६६ ॥ बाहि जइवि असुद्धा तहावि गंतूण गुरुपरिक्खा उ । अहव विसुद्धा तहवि उ अंतो दुविहा उ पडिलेहा ।।१०।।
पविसंतनि मत्तणेसणं व साहइ न एरिसा समणा । 20 अम्हंपि ते कहती कुक्कुडखरियाइठाणं च ।। १०१ ।।
दव्वंमि ठाणफलए सेज्जासंथारकायउच्चारे । कंदप्पगीयविकहा वुग्गहकिड्डा य मामि ॥१०२ ।।
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