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________________ (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ ३०३ नव चेव भ्रढारसगं सत्तावीसा तहेव चउपन्ना | नउई दो चेव सया उ सत्तरी होइ कोडीणं ।। ४०२ ।। सोलस उग्गमदोसे गिहिणो उ समुट्ठिए वियाणाहि । उपायणाएँ दोसे साहू समुट्ठिए जाण ।। ४०३ ॥ 5 णामं ठवणा दबिए भावे उपायणा मुणेयव्वा । दव्यंमि होइ तिविहा भावंमि उ सोलसपया उ ।। ४०४ ।। आसूयमाइएहि वालचिय-तुरंग बीयमाईहि । सुयआसदुमाईणं उप्पाघणया उ सच्चित्ता ।। ४०५ ।। कणगरययाइयाणं जट्ट धाउविहिया उ अच्चित्ता । JO मीसा उ सभंडाणं दुपयाइकया उ उत्पत्ती ।। ४०६ ।। भावे पसत्थ इयरो कोहाउप्पायणा उ अपसत्था । कोहाइजुया धायाइणं च नाणाइ उ पसत्था ।। ४०७ ।। धाई दूइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥। ४८८ ।। 15 पुव्वि-प - पच्छा-संथव विज्जा मंते य चुन्न जोगे य । उप्पायनाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ।। ४०९ ।। खीरे य मज्जणे मंडणे य कोलावणंकधाई य । एक्क्कावि य दुविहा करणे कारावणे चेव ।। ४१० ।। धारेइ धीयए वा धयंति वा तमिति तेण धाई उ । 20 जहविहवं आसि पुरा खीराई पंच धाईप्रो ।। ११ । खीराहारो रोवइ मज्भ कयासाय देहि णं पिज्जे | पच्छा व मज्भ दाही अलं व भुज्जो व एहामि ।। ४१२ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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