________________
२७६ ]
[ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियुक्तिः
परकम्म अत्तकम्मोकरेइ तं जो उ गिहिउं भुजे । तत्थ मवे परकिरिया कहं नु अन्नत्थ संकमइ ? ॥ १०८ ।। कूडउवमाइ केइ परप्पउत्तऽवि बेंति बंधोत्ति ।
भणइ य गुरू पमत्तो बज्झइ कूडे अदक्खो य ।। १०६ ।। 5 एमेव भावकूडे बज्झइ जो असुभभाव परिणामो ।
तम्हा उ असुभभावो वज्जेयम्वो पयत्तेणं ।। ११० ।। कामं सयं न कुव्वइ जाणंतो पुण तहावि तग्गाही। वड्ढेइ तप्पसंगं अगिण्हमाणो उ वारेइ ।। ११ ।।
अत्तीकरेइ कम्म पडिसेवाईहिं तं पुण इमेहिं । 10 तत्थ गुरू आइपयं लहु लहु लहुगा कमेणियरे ।। १२ ।।
पडिसेवणमाईणं दाराणऽणमोयणा-वसाणाणं । जहसंभवं सरूवं सोदाहरणं पवक्खामि ॥१३ ।। अनेणाहाकम्म उवणीयं असइ चोइओ भणइ ।
परहत्थेणंगारे कड्ढतो जह न डज्झइ हु ।। १४ ।। 15 एवं खु अहं सुद्धो दोसो देतस्स कूडउवमाए ।
समयस्थमजाणतो मूढो पडिसेवणं कुणइ ।। १५ ।। उवनोगंमि य लाभं कम्मग्गाहिस्स चित्तरक्खट्टा । आलोइए सुलद्धं भणइ भणंतस्स पडिसुणणा ।। १६ ।।
संवासो उ पसिद्धो अणुमोयण कम्मभोयग-पसंसा। 20 एएसिमुदाहरणा एए उ कमेण नायव्वा ।। १७ ।।
पडिसेवणाएँ तेणा पडिसुणणाए उ रायपुत्तो उ । संवासंमि य पल्ली अणुभोयण रायदुट्ठो य ।।१८।।
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org