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________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ] [ ३५९ प्रभासवित्तिछंदाणुवत्तगं देसकालदाणं च । अब्भुट्ठाणं अंजलि पासणदाणं च अत्थकए ।। १२ ।। एमेव कामविणो भए अ नेप्रब्वमाणुपुत्वीए । मोक्खंमिऽवि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ १३ ।। 5 दसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेव ।। एसो अ मोक्खविणओ पंचविहो होइ नायवो ।। १४ ।। दव्याण सव्वभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहि । ते तह सद्दहइ नरो दंसणविणओ हवइ तम्हा ॥ १५ ।। नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कुणइ किच्चाई। 10 नाणी नवं न बंधइ नाणविणोश्रो हवइ तम्हा ।। १६ ।। प्रदविहं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो। नवमन्नं च नं बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा ।। १७ ।। अवणेइ तवेण तम उवणेइ अ सगमोक्खमप्पाणं ।। तवविणयनिच्छयमई तवोविणोओ हवइ तम्हा ।। १८ ।। अह ओवयारिलो पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुजण तह य अणासायणाविणओ ।। १६ ।। पडिरूवो खलु-विणओ काइअजोए य वाइ माणसिनो । अट्ठ चउम्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ।। ३२० ।। अब्भृट्ठाणं अंजलि पासणदाणं अभिग्गह किई अ । सुस्सूसणमणुगच्छण संसाहण काय अट्टविही ।। २१ ।। हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणो । अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ।। २२ ।। - 15 20 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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