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(४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः ]
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प्रभासवित्तिछंदाणुवत्तगं देसकालदाणं च । अब्भुट्ठाणं अंजलि पासणदाणं च अत्थकए ।। १२ ।। एमेव कामविणो भए अ नेप्रब्वमाणुपुत्वीए ।
मोक्खंमिऽवि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ १३ ।। 5 दसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेव ।।
एसो अ मोक्खविणओ पंचविहो होइ नायवो ।। १४ ।। दव्याण सव्वभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहि । ते तह सद्दहइ नरो दंसणविणओ हवइ तम्हा ॥ १५ ।।
नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कुणइ किच्चाई। 10 नाणी नवं न बंधइ नाणविणोश्रो हवइ तम्हा ।। १६ ।।
प्रदविहं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो। नवमन्नं च नं बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा ।। १७ ।। अवणेइ तवेण तम उवणेइ अ सगमोक्खमप्पाणं ।। तवविणयनिच्छयमई तवोविणोओ हवइ तम्हा ।। १८ ।। अह ओवयारिलो पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुजण तह य अणासायणाविणओ ।। १६ ।। पडिरूवो खलु-विणओ काइअजोए य वाइ माणसिनो । अट्ठ चउम्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ।। ३२० ।। अब्भृट्ठाणं अंजलि पासणदाणं अभिग्गह किई अ । सुस्सूसणमणुगच्छण संसाहण काय अट्टविही ।। २१ ।। हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणो । अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ।। २२ ।।
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