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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः
एसा परिवणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता। सामायारी एत्तो वृच्छं अप्पक्खरमहत्थं ॥२५॥ सन्नातो पागतो चरमपोरिसिं जाणिऊण ओगाढं।
पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ सज्झायं ॥ २६ ।। 5 पुवहिट्ठो य विही इहपि पडिलेहणाइ सो चेव ।
जं एत्थं नाणत्तं तमहं बुच्छं समासेणं ।। २७ ।। पडिलेहगा उ दुविहा भत्तट्टियएयरा य नायव्वा । दोण्हवि य प्राइपडिलेहणा उ मुहणंतग सकायं ।। २८ ।।
तत्तो गुरू परिन्ना गिलाणसेहाति जे प्रभत्तट्टी। 10 संदिसह पाय मत्ते य अप्पणो पट्टगं चरिमं ।। २६ ।।
पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइ या प्रणुनवणा। तो सेस पायवत्थे पाउंछणगं च भत्तट्ठी ।। ६३० ।। जस्स जहा पडिलेहा होइ कया सो तहा पढइ साहू । परियट्टेइ व पयओ करेइ वा अन्नवावारं ॥ ३१ ।। चउभागवसे साए चरिमाए पडिक्कमित्तु कालस्स । उच्चारे पासवणे ठाणे चउवीसई पेहे ॥ ३२ ॥ अहियासिया उ अंतो आसन्ने मज्झि तह य दूरे य । तिन्नेव अणहियासी अंतो छच्छच्च बाहिरओ ।। ३३ ।।
एमेव य पासवणे बारस चउवीस तु पेहित्ता । 20 कालस्सवि तिन्नि भवे अह सूरो अस्थमुवयाई ॥ ३४ ॥
जइ पुण निवाघाओ प्रावासं तो करेंति सम्वेवि । सडादकरणवाघायताएँ पच्छा गरू ठति ॥ ६३५ ।।
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