SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ४ ) श्रीदशवैकालिकनिर्युक्तिः जह नाम आउरस्सिह सीवणछेज्जेसु कीरमाणेसु । जंतणमपत्थ कुच्छाऽऽमदोसविरई हिअकरी उ ।। ६४ ।। अट्ठविहकम्मरोगाउरस्स जीअस्स तह तिगिच्छाए । धम्मे रई अधम्मे अरई गुणकारिणी होइ ।। ६५ ।। 5 सज्झायसंजमतवे वेप्रावच्चे अ झाणजोगे अ । जो रमइ नो रमइ श्रस्संजमम्मि सो वच्चई सिद्धि ।। ६६ ॥ तम्हा धम्मे रइकारगाणि अरइकारगाणि उ ( य ) अहम्मे । ठाणाणि ताणि जाणे जाई भणिश्राइं अयणे ।। ३६७ ।। 10 15 20 ॥ इति रइचूला - निज्जुन्ति ॥ १॥ ॥ २ चूला ॥ निर्युक्तिः ॥ दव्वे सरीरभविओ भावेण य संजओ इहं तस्स । उग्गहिश्रा पग्गहिआ विहारचरिआ मुणेअव्वा ।। ३६८ ।। अणिएनं पइरिक्कं अण्णायं सामुप्राणिनं उंछं । अप्पोवही प्रकलहो विहारचरिआ इसिपसत्था ।। ३६९ ।। ॥ इह निवित्तचूलानिज्जुत्तिः ॥ २ ॥ छहि मासेहि अहीअं अज्झयणमिणं तु अम्नमणगेणं । छम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए ॥ ३७० ॥ आनंदअंसुपायं कासी सिज्जभवा तहि थेरा । जसभद्दस्स य पुच्छा कहणा अ विआला संघे ।। ३७१ ।। || इइ दशवेयालियनिज्जुति || ४ || Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy