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[ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ४ ) श्रीदशवैकालिकनिर्युक्तिः
जह नाम आउरस्सिह सीवणछेज्जेसु कीरमाणेसु । जंतणमपत्थ कुच्छाऽऽमदोसविरई हिअकरी उ ।। ६४ ।। अट्ठविहकम्मरोगाउरस्स जीअस्स तह तिगिच्छाए । धम्मे रई अधम्मे अरई गुणकारिणी होइ ।। ६५ ।। 5 सज्झायसंजमतवे वेप्रावच्चे अ झाणजोगे अ ।
जो रमइ नो रमइ श्रस्संजमम्मि सो वच्चई सिद्धि ।। ६६ ॥ तम्हा धम्मे रइकारगाणि अरइकारगाणि उ ( य ) अहम्मे । ठाणाणि ताणि जाणे जाई भणिश्राइं अयणे ।। ३६७ ।।
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॥ इति रइचूला - निज्जुन्ति ॥ १॥ ॥ २ चूला ॥ निर्युक्तिः ॥
दव्वे सरीरभविओ भावेण य संजओ इहं तस्स । उग्गहिश्रा पग्गहिआ विहारचरिआ मुणेअव्वा ।। ३६८ ।। अणिएनं पइरिक्कं अण्णायं सामुप्राणिनं उंछं । अप्पोवही प्रकलहो विहारचरिआ इसिपसत्था ।। ३६९ ।। ॥ इह निवित्तचूलानिज्जुत्तिः ॥ २ ॥ छहि मासेहि अहीअं अज्झयणमिणं तु अम्नमणगेणं । छम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए ॥ ३७० ॥ आनंदअंसुपायं कासी सिज्जभवा तहि थेरा । जसभद्दस्स य पुच्छा कहणा अ विआला संघे ।। ३७१ ।। || इइ दशवेयालियनिज्जुति || ४ ||
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