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________________ (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्ति: ] [ ३६३ जुत्तीसुवण्णगं पुरण सुवण्णवण्णं तु जइवि कीरिज्जा। न हु होइ तं सुवण्णं सेसेहि गुणेहिं संतेहि ॥ ५४ ।। जे अज्झयणे भणिआ भिक्खुगुणा तेहि होइ सो भिक्खू । वण्णण जच्चसुवण्णगं व संते गुणनिहिमि ॥ ५५ ॥ 5 जो भिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिण्हइ न होइ सो भिक्खू । वण्णण जुत्तिसुवण्णगं व असई गुणनिहिम्मि ।। ५६ ।। उद्दिट्टकयं भुंजइ छक्कायपमद्दओ घरं कुणइ । पच्चक्खं च जलगए जो पियइ कह नु सो भिक्खू ? ॥ ५७ ॥ तम्हा जे अज्झयणे भिक्खुगुणा तेहिँ होइ सो भिक्खू । 10 तेहि असउत्तरगुणेहि होइ सो भाविनतरो उ ॥ ३५८ ।। ॥ इति सभिक्खुनिज्जुत्ति ॥१०॥ ॥ १ चूला ॥ नियुक्तिः ॥ ववे खेत्ते काले भावम्मि प्र चूलिआय निक्खेवो । तं पुण उत्तरतंतं सुअगहिग्रस्थं तु संगहणी ।। ३५९ ।। 15 दव्वे सच्चित्ताई कुक्कुडचूडामणीमऊराई । खेत्तंमि लोगनिक्कुड मंदरचूडा प्र कूडाई ॥३६० ।। अइरित्त अहिगमासा अहिगा संबच्छरा अ कालंमि। भावे खोवसमीए इमा उ चूडा मुणेअव्वा ।। ६१ ॥ दवे दुहा उ कम्मे नोकम्मरई अ सद्ददव्वाई। 20 भावरई तस्सेव उ उदए एमेव अरईवि ॥ ६२ ।। वक्कं तु पुव्वणि धम्मे रइकारगाणि वषकाणि । जेरणमिमीए तेणं रइवक्केसा हवइ चडा ।। ६३ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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