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[नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः
भिदंतो अ जह खुहं भिक्खू जयमाणो जई होइ । संजमचरओ चरमो भवं खिवंतो भवंतो उ ।। ४३ ।। जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू खवेइ जं व अणं । तवसंजमे तवस्सित्ति वावि अन्नोऽवि पज्जाओ ।। ४४ ।। तिन्ने ताई दविए वई अ दंत विरए अ । मुणितावसपन्नवगुजुभिक्खू बुद्धे जइ विऊ अ ॥ ४५ ॥ पव्वइए प्रणगारे पासंडी चरग बंभणे चेव । परिवायगे अ समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥४६ ।।
साहू लूहे अ तहा तोरट्ठी होइ चेव नायवो। 10 नामारिण एवमाई रिण होंति तवसंजमरयाणं ।। ४७ ।।
संवेगो निम्वेप्रो विसयविवेगो सुसीलसंसम्गो । पाराहणा तवो नाणदंसणचरित्तविणओ अ ।। ४८ ।। खंती अ मद्दवऽज्जव विमुत्तया तह अदीणय तितिक्खा। आवस्सगपरिसुद्धी अ होति भिक्खुस्स लिगाइं ॥ ४९ ।। अज्झयणगुणी भिक्खू न सेस इइ णो पइन्न-को हेऊ ? । अगुणत्ता इइ हेऊ-को दिटूठंतो?. सुवण्णमिव ।। ३५० ।। विसघाइ रसायरण मंगलत्थ विरिणए पयाहिणावत्ते । गुरुए अडझऽकुत्थे अट्ठ सुवण्णे गुणा भणिआ ।। ५१ ॥
च उकारणपरिसुद्धं कसछेप्रणतावतालणाए अ । 20 जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजुधे होइ ॥ ५२ ॥
तं कसिणगुणोवेधे होइ सुवणं न सेसयं जुत्ती । नहि नामरूवमेत्तेण एवमगुणो हबइ भिक्खू ।। ५३ ।।
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