SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः भिदंतो अ जह खुहं भिक्खू जयमाणो जई होइ । संजमचरओ चरमो भवं खिवंतो भवंतो उ ।। ४३ ।। जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू खवेइ जं व अणं । तवसंजमे तवस्सित्ति वावि अन्नोऽवि पज्जाओ ।। ४४ ।। तिन्ने ताई दविए वई अ दंत विरए अ । मुणितावसपन्नवगुजुभिक्खू बुद्धे जइ विऊ अ ॥ ४५ ॥ पव्वइए प्रणगारे पासंडी चरग बंभणे चेव । परिवायगे अ समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥४६ ।। साहू लूहे अ तहा तोरट्ठी होइ चेव नायवो। 10 नामारिण एवमाई रिण होंति तवसंजमरयाणं ।। ४७ ।। संवेगो निम्वेप्रो विसयविवेगो सुसीलसंसम्गो । पाराहणा तवो नाणदंसणचरित्तविणओ अ ।। ४८ ।। खंती अ मद्दवऽज्जव विमुत्तया तह अदीणय तितिक्खा। आवस्सगपरिसुद्धी अ होति भिक्खुस्स लिगाइं ॥ ४९ ।। अज्झयणगुणी भिक्खू न सेस इइ णो पइन्न-को हेऊ ? । अगुणत्ता इइ हेऊ-को दिटूठंतो?. सुवण्णमिव ।। ३५० ।। विसघाइ रसायरण मंगलत्थ विरिणए पयाहिणावत्ते । गुरुए अडझऽकुत्थे अट्ठ सुवण्णे गुणा भणिआ ।। ५१ ॥ च उकारणपरिसुद्धं कसछेप्रणतावतालणाए अ । 20 जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजुधे होइ ॥ ५२ ॥ तं कसिणगुणोवेधे होइ सुवणं न सेसयं जुत्ती । नहि नामरूवमेत्तेण एवमगुणो हबइ भिक्खू ।। ५३ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy