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________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११- कायोत्सर्गनियुक्ति } । १६१ तहविय अठायमाणो. गोणसखइयाइ रुप्फए वावि । कोरइ तयंगछेओ सअट्ठिओ सेस रक्खा ॥३८ ।। मूलुत्तरगुणरूवस्स ताइणो परमचरणपुरिसस्स । अवराहसल्लपभवो भाववणो होइ नायव्वो ।। १ ।। (प्र.) 5 भिक्खायरियाइ सुज्झइ अइयारो कोइ वियडणाए उ । बीओ असमिओमित्ति कोस सहसा अगुत्तो वा ? ॥ ३९ ॥ सद्दाइएसु रागं दोसं च मणा गओ तइयगंमि । नावं असणिज्ज भत्ताइविगिचण चउत्थे ।। १४४० ।। उस्सग्गेणवि सुज्झइ अइआरो कोइ कोइ उ तवेण ।। 10 तेणवि असुज्झमाणं छेय विसेसा विसोहिति ।। ४१ ।। निक्खेवेगठ्ठ विहाणमग्गणा काल भेयपरिमाणे ।। प्रसढसढे विहि दोसा कस्सत्ति फलं च दाराई ॥४२ ।। कायस्स उ निक्खेवो बारसओ छक्कओ अ उस्सगे । एएसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं वुच्छं ।। ४३ ।। 15 नाम ठवणसरोरे गई निकायस्थिकाय दविए. य । माउय संगह पज्जव भारे तह भावकाए य ।। ४४ ।। काओ कस्सइ नाम कीरइ देहोवि वृच्चई काओ। कायमणिओवि वुच्चइ बद्धमवि निकायमाहंसु ।। ४५॥ अक्खे वराडए वा कट्ठ पुत्थे य चित्तकम्मे य । सम्भावमसम्भावं ठवणाकायं वियाणाहि ॥ ४६ ।। लिप्पगहत्थी हस्थित्ति एस सब्भाविया भवे ठवणा। होइ असम्भावे पुण हस्थित्ति निरागिई प्रक्खो । ४७ ।। 20 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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