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________________ १८४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( १ ) आवश्यक निर्युक्ति: पट्टवणो अ दिवसो पच्चक्खाणस्स निदुवणश्रो श्र । जहियं समिति दुनिवि तं भन्नइ कोडिसहियं तु ॥ ८४ ॥ मासे मासे अ तवो प्रसुगो अमुगे दिणंमि एवइमो । हट्ठण गिलाणेण य कायव्त्रो जाव ऊसासो । ८५ ।। 3 एवं पच्चषखाणं नियटियं धोरपुरिरुपन्नत्त । ।। ८७ ।। जगिण्हतणगारा अणिस्सि ( विभ) अप्पा श्रपबिद्धा || ६ || चउदसपुथ्वी जिनकप्पिएस पढमंमि चैव संघघणे । एयं विच्छिन्नं खलु थेरावि तथा करेसी य मयहरगागारेहिं असत्थवि कारणंमि जायंमि । 10 जो भत्तपरिच्चायं करेइ सागारकडमेय ।। ८५ ।। निज्जाय कारणमी मयहरगा तो करंति आगारं । कतारवित्तिदुभिक्खयाइ एय निरागारं ।। ६९ ।। दत्तोहि उ कवलेहि व घरेहिं भिक्खाहि अह व दव्वेहि । जो भक्तपरिच्चायं करेड परिमाणकडमेयं ।। १५९० ॥ 15 सव्वं असण सव्व पाणगं सव्वखज्जभुज्जविहं । वोसिरइ सव्वभावेण एय भणियं निरवसेसं अंगुट्टमुट्ठिगंठी- घर से उस्सास थिबुगज इक्खे । भणियं संकेयमेयं धीरेहिं अणतनाणीहि ।। ६२ ।। अद्धा पच्चक्खाणं जं त कालप्पमाण छेएन । 20 पुरिमडपोरिसीए मुहुत्तमासद्धमासेहिं ।। ६३ ।। भणियं दस विहमेय पच्चक्खाणं गुरूवए सेणं । कयपच्चक्खाणविहिं इत्तो वुच्छं समातेणं ॥ ६४ ॥ ।। ९१ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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