SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६-प्रत्याख्यानध्ययनम् :: १२-प्रत्याख्याननियुक्तिः ] [ १८५ प्राह जह जीवघाए पच्चक्खाए न कारए अन्नं । भंगभयाऽसणदाणे धुव कारवणे य नणु दोसे ।। ९५ ॥ नो कयपच्चक्खाणो आयरियाईण दिज्ज असणाई । न य विरइपालणाओ वेयावच्चं पहाणयरं ॥९६ ।। 5 नो तिविहं तिविहेणं पच्चक्खइ अन्नदाणकारवणं । सुद्धस्स तओ मुणिणो न होइ तभंगहेउत्ति ।। ९७॥ सयमेवऽणुपालणियं दाणुवएसो य नेह पडिसिद्धो। ता दिज्ज उवइसिज्ज व जहा समाहीइ अन्नेसि ।। ९८ ।। कयपच्चक्खाणोऽविय आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । 10 दिज्जासणाइ संते लाभे कयवीरियायारो ॥ ९९ ।। सा पुण सद्दहणा जाणणा य विणयाणभासणा चेव । अणुपालणाविसोही भावविसोही भवे छट्टा ।। १६०० ।। सूरे उग्गए णमोक्कारसहितं-पच्चक्खामि-चउविपि आहारं असणं पाणं खाइम, साइमं अण्णात्थणभोगेणं सहसाकारेणंवोसिरामि ।। सूत्रम् ॥ असणं पाणगं चेव · खाइमं साइमं तहा । एसो आहारविही चविहो होइ नायवो ॥१६०१ ॥ आसु खुहं समेई प्रसणं पाणाणुवग्गहे पाणं। खे माइ खाइमंति य साएइ गुणे तओ साई ॥ १६०२ ।। 20 सवोऽविय आहारो प्रसणं सव्वोऽवि वुच्चई पाणं। सम्वोऽवि खाइमंति य सम्वोऽवि य साइमं होई ।। १६०३ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy