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________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः ] [ ६९ जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोऽवि । तइओ य तहक्कारो न दुल्लभा सोग्गई तस्स ।। ६६० ।। प्रावस्सियं च णितो जं च प्रइंतो निसीहियं कुणइ । एयं इच्छं नाउं गणिवर ! तुब्भंतिए जिउणं ।। ९१ ।। 5 आवस्सियं च णितो जं च अइंतो निसीहियं कुणइ । वंजणमेयं तु दुहा अत्थो पुण होइ सो चेव ।। ९२ ।। एगग्गस्स पसंतस्स न होंति इरियाइया गुणा होति । गंतवमवस्सं कारणमि आवस्सिया होइ ।। ६३ ।। प्रावस्सिया उ आवस्सएहि सवेहि जुत्तजोगिस्स । 10 मणवयणकाय गुत्तिदियस्स प्रावस्सिया होइ ।। ६४ ॥ सेज्जं ठाणं च जहिं चेएइ तहि निसोहिया होइ । जम्हा तत्थ निसिद्धो तेणं तु निसीहिया होइ ।। ६५ ।। सेज्जं ठाणं च जदा चेतेति तया निसोहिया होइ। जम्हा तदा निसेहो निसेहमइया च सा जेणं ।। ९६ ॥ आपुच्छणा उ कज्जे पुवनिसिद्धेण होइ पडिपुच्छा। पुवगहिएण छंदण णिमंतणा होप्रगहिएणं ॥ ९७ ।। उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरित्ते य । दसणणाणे ति विहा दुविहा य चरित्तट्टाए ।। ९८ ।। वत्तणा संधणा चेव गहणं सुत्तत्थतदुभए । वेयावच्चे खमणे, काले आवकहाइ य ।। ९९ ॥ संदिट्ठो संदिट्ठस्स चेव संपज्जई उ एमाई । च उभंगो एत्थं पुण पढमो भंगो हवइ सुद्धो ॥ ७०० ।। 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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