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४-प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९-पारिष्ठापनिकानियुक्तिः] [ १३५
अन्नाविटुसरीरे पंता वा देवया उ उट्ठज्जा । काइयं उब्बहत्थेण मा उ? बुज्झ गुज्झया ! ॥ ३९ ॥ वित्तासेज्ज हसे ज्ज व भोमं वा अट्टहास मुचेज्जा।
अभीएणं तत्थ उ कायध्वं विहीए वोसिरणं ।। ४० ।। 5 दोन्नि य दिवड्डखेते दब्भम या पुत्तला उ कायब्वा ।
समखेत्तंमि उ एक्को अवड्डऽभीए ण कायव्वो ॥४१ ।। तिण्णेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणो विसाहा य । एए छ नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ ४२ ।।
अस्सिणि कत्तिय मियसिर पुस्सो मह फग्गुहत्थ चिता य । 10 अणुराह मूल साढा सवणधणिट्ठा य भद्दवया ।। ४३ ।।
तह रेवइत्ति एए पन्नरस हवंति तीसइमुहुत्ता । नवखत्ता नायव्वा परिट्ठवणविहीय कुसलेणं ॥४४ ।। सभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । एए छ नवखत्ता पनरसमुहुत्तसंजोगा ॥ ४५ ॥ सुत्तत्थतदुभविऊ पुरओ घेत्तूण पाणय कुसे य । गच्छइ य जइ उड्डाहो (सागारियं) परिढुवेऊण आयमणं।४६। थंडिलवाघाएणं अहवावि अणिच्छिए अणाभोगा। भमिऊण उवागच्छे तेणेव पहेण न नियत्ते ॥ ४७ ।।
कुसमुट्ठी एगाए अव्वोच्छिण्णाइ एत्थ धाराए। 20 संथारं संथरेज्जा सव्वत्थ समो उ कायश्वो ।। ४८ ॥
विसमा जह होज्ज तणा उरि मज्झे व हेदुओ वावि । मरणं गेलण्णं वा तिण्हंपि ऊ निहिसे तत्थ ।। ४९ ॥
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