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________________ ९८ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यक नियुक्ति। पायरियनमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुर्णताणं । हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ।।६७ ।। पायरियनमुक्कारो एवं खलु वणिो महत्थुत्ति । जो मरणंमि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। ९८ ॥ 5 आयरियनमुक्कारो सम्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि तइनं हवइ मंगलं ॥ ९९ ॥ नामं ठवणादविए भावंमि चउम्विहो उध्वज्झायो । दवे लोइअ सिप्पाइ निहगा वा इमे भावे ॥१००० ।। बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ देसि (कहि)ो बुहेहि । 10 तं उवासंति जम्हा उवज्झाया तेण वुच्चंति ॥ १।। उत्ति उवीगकरणे ज्झात्ति प्र झारणस्स होइ निद्देसे । एएण हुँति उज्झा एसो प्रन्नोऽवि पज्जाओ ॥२॥ उत्ति उवओगकरणे वत्ति प्र पावपरिवज्जणे होइ। झत्ति अ झाणस्स कए उत्ति अ ओसक्कणा कम्मे ।। ३ ।। 13 उवज्झायनमोक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरभाणो होइ पुरण बोहिलाभाए ॥४ ।। उवज्झायनमुक्कारो धन्माण भवक्खयं कुणंताणं । हिमयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥५॥ उवज्झायनमुक्कारो एवं खलु वण्णिअओ महत्थुत्ति । 20 जो मरणमि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। ६ ।। उवज्झायनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सवेसि च उत्थं हवइ (होइ) मंगलं ॥ ७ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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