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७) श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ]
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अंतोमुत्तमद्धं सेलेसीए भवे अणाहारा।। सादीयमनिहणं पुण सिद्धा यऽणहारगा होति ।। १७६ ।। जोएण कम्मएणं आहारेई अणंतरं जीवो ।
तेण परं मीसेणं जाव सरीरस्स निष्फत्ती ॥ १७७ ।। 5 णामं ठवणपरिन्ना दम्वे भावे य होइ नायव्वा ।
दवपरिन्ना तिविहा मावपरिन्ना भवे दुविहा ।। १७८ ।। ॥२-४ ॥ अथ चतुर्थ-प्रत्याख्यानाध्ययन-नियुक्तिः॥
णामंठवणादविए अइच्छ पडिसेहए य भावे य ।
एसो पच्चक्खाणस्स छविधहो होइ निक्खेवो ।। १७९ ।। 10 मूलगुणेसु य पगयं पच्चक्खाणे इहं अधीगारो।
होज्ज हु तप्पच्चइया अप्पच्चक्खाणकिरिया उ ।। १८० ।। ॥२-५ ॥ अथ पञ्चमाचारश्रुताध्ययन । __णामंठवणायारे दवे भावे य होति नायव्वो।
एमेव य सुत्तस्सा निक्खेवो चउविहो होति ।।१८१ ।। 15 प्रायारसुयं भणियं वज्जेयवा सया अणायारा।
प्रबहुसुयस्स हु होज्ज विराहणा इत्थ जइयव्वं ।। १८२ ।। एयस्स उ पडिसे हो इहमज्झयणमि होति नायव्वो। तो अणगारसुयंति य होई नामं तु एयस्स ॥१८३ ॥
॥२-६ ॥ अथ षष्ठादकीयाध्ययन नियुक्तिः ॥ 20 नामंठवणाअई दव्वदं चेव होइ भावई ।
एसो खलु अद्दस्स उ निवखेवो चउविहो होइ ।। १८४ ॥
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