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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (४) श्रीदशवैकालिकनियुक्तिः
वण्णरसगंधफासे समणुण्णा सा पहाणओ सुद्धी। तत्थ उ सुक्किल महुरा उ संमया चेव उक्कोसा ।। ८५ ।। एमेव भावसुद्धी तभावाएसमो पहाणे प्र। तभावगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी ।। ६६ ।। दसणनाणचरित्ते तवोविसुद्धी पहाणमाएसो। जम्हा उ विसुद्धमलो तेरण विसुद्धो हवइ सुद्धो ।। ८७ ।। जं वक्कं वयमाणस्स संजमो सुज्झई न पुण हिंसा । न य प्रत्तकलुसमावो तेण इहं वक्कसुद्धित्ति ॥ ८ ॥ वयणविभत्तीकुसलस्स संजमंमी समुज्जुयमइस्स । दुब्भासिएण हुज्जा हु विराहणा तत्थ जइअव्वं ।। ८६ ।। वयणवित्तिअकुसलो वओगयं बहुविहं प्रयाणंतो। जइवि न भासइ किंची न चेव वयगुत्तयं पत्तो ।। २६० ।। वयरणविभत्तीकुंसलो वप्रोगयं बहुविहं बियाणंतो। दिवसंपि भासमाणो तहावि वयगुत्तयं पत्तो ।। ९१ ।। पुत्वं बुद्धीइ पेहित्ता, पच्छा वयमुयाहरे। अचक्खुओ व नेतारं, बुद्धिमन्ने उ ते गिरा ।। २९२ ।।
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॥इइ सवकसुडीनिज्जुति ॥ ७॥
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