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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः
प्रज्झयणे निक्लेवो चउक्कओ दुविह होय नायन्यो ।। ४३ ।। जाणगभवियसरीरं तवरित च पोत्थगाईसुं । अज्झप्पस्साणयणं नायव्वं भावमज्झयणं ।। ४४ ॥
एयासि लेसाणं नाऊण सुहासुहं तु परिणामं । 5 चइऊण अप्पसत्थं पसत्थलेसासु जइप्रध्वं ।। ५४५ ।। ॥ ३५ ॥ अथ पञ्चत्रिंशत्तमाणगारमार्गगत्यध्ययन
नियुक्तिः॥ अणगारे निक्खेवो चउम्विहो दुविह होइ नायवो० ।।५४६।।
जाणगभवियसरीरे तवारिसे अ निहगाईसु । 10 भावे सम्मद्दिट्ठी अगारवासा विणिम्मुक्को ।। ४७ ।।
मग्गगईणं दुण्हवि पुश्वुद्दिट्ठो चउपकनिक्खेवो ।
अहिगारो भावमग्गे सिद्धिगईए उ नायव्यो ।। ५४८ ।। ॥३६ ।। अथ षत्रिंशत्तमजीवाजीवविभक्त्यध्ययन
नियुक्तिः॥ 15 निक्खेवो जीवंमि अ चउविहो दुविह होइ नायव्यो० ॥५४६ ।
जाणगभवियसरीरे तव्वइरित्ते अ जीवदव्वं तु । भावमि दसविहो खलु परिणामो जीवदव्वस्स ॥ ५५० ॥ निक्खेवो अजीवंमि चउब्धिहो दुविह होइ नायवो० ।।५१।।
जाणगभवियसरीरे तन्वइरित्ते अजीवदव्वं तु । 20 भामि दसविहो खलु, परिणामो अजीवदध्वस्स ।। ५२ ।।
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