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(५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ]
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नोकम्मे दवाइं गहणपाउगमुक्कगाई च ।। भावे उदओ भणिओ मूलपडि उत्तराणं च ।। ३२ ।। पगइठिई अणुभागं पएसकम्मं च सुट्ठ नाऊणं ।
एएसि संवरे खलु खवणे उ सयावि जइअव्वं ॥ ५३३ ।। 5॥३४॥ अथ चतुस्त्रिंशत्तमलेश्याध्ययननियुक्तिः ॥
लेसाणं निवखेवो च उक्कओ दुविह होइ नायवो० ॥५३४॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मा नोकम्मे या नोकम्मे हुति दुविहा उ ॥ ३५ ॥
जीवाणमजीवाण य दुविहा जीवाण होइ नायव्वा । 10 भवमभवसिद्धिआणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा ॥ ३६ ।।
अजीवकम्मनो दव्वलेसा सा दमविहा उ नायव्वा । चंदाण य सूराण य गहगणनखत्तताराणं ।। ५३७ ॥ आभरणच्छायणादंसगारण मणिकागिणीण जा लेसा ।
अजीवदव्वलेसा नायव्वा दसविहा एसा ॥३८ ।। 15 जा दश्वकम्प्रलेसा सा नियमा छविहा उ नायव्वा ।
किण्हा नीला काऊ तेउ पम्हा य सुक्का य ॥ ३६ ।। दुविहा उ भावलेसा विसुद्धलेसा तहेव अविसुद्धा । दुविहा विसुद्धलेसा उवसमखइमा कसायाणं ॥ ५४० ।।
अविसुद्धभावलेसा सा दुविहा नियमसो उ नायव्वा । 20 पिज्जमि प्रदोसंमि अ अहिगारो कम्मलेसाए ॥४१ ।।
नोकम्मदवलेसा पओगसा वीससा उ नायव्वा । भावे उदओ भणिओ छण्हं लेसाण जीवेसु ।। ४२ ।।
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