SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः ] [ ४१७ नोकम्मे दवाइं गहणपाउगमुक्कगाई च ।। भावे उदओ भणिओ मूलपडि उत्तराणं च ।। ३२ ।। पगइठिई अणुभागं पएसकम्मं च सुट्ठ नाऊणं । एएसि संवरे खलु खवणे उ सयावि जइअव्वं ॥ ५३३ ।। 5॥३४॥ अथ चतुस्त्रिंशत्तमलेश्याध्ययननियुक्तिः ॥ लेसाणं निवखेवो च उक्कओ दुविह होइ नायवो० ॥५३४॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मा नोकम्मे या नोकम्मे हुति दुविहा उ ॥ ३५ ॥ जीवाणमजीवाण य दुविहा जीवाण होइ नायव्वा । 10 भवमभवसिद्धिआणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा ॥ ३६ ।। अजीवकम्मनो दव्वलेसा सा दमविहा उ नायव्वा । चंदाण य सूराण य गहगणनखत्तताराणं ।। ५३७ ॥ आभरणच्छायणादंसगारण मणिकागिणीण जा लेसा । अजीवदव्वलेसा नायव्वा दसविहा एसा ॥३८ ।। 15 जा दश्वकम्प्रलेसा सा नियमा छविहा उ नायव्वा । किण्हा नीला काऊ तेउ पम्हा य सुक्का य ॥ ३६ ।। दुविहा उ भावलेसा विसुद्धलेसा तहेव अविसुद्धा । दुविहा विसुद्धलेसा उवसमखइमा कसायाणं ॥ ५४० ।। अविसुद्धभावलेसा सा दुविहा नियमसो उ नायव्वा । 20 पिज्जमि प्रदोसंमि अ अहिगारो कम्मलेसाए ॥४१ ।। नोकम्मदवलेसा पओगसा वीससा उ नायव्वा । भावे उदओ भणिओ छण्हं लेसाण जीवेसु ।। ४२ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy