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________________ १८० ] [नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः तंजहा-अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिग्गहियागमणे अणंगकीडा परविवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे ॥४॥ सूत्रम् ॥ अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छा5 परिमाणं उवसंपजइ, से परिग्गहो दुविहे पन्नते, तंजहा सचित्तपरिग्गहे य अचित्तपरिग्गहे य, इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियचा, तंजहाधणधनपमाणाइक्कमे, खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरनसुव नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कुवियपमा10 णाइक्कमे ॥ ५॥ सूत्रम् ॥ दिसिवए तिविहे पन्नत्ते, तंजहा-उड़दिसिवए अहोदिसिवए तिरियदिसिवए, दिसिंवयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-उदिसिपमा णाइक्कमे अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइ15 क्कमे खित्तवुड़ी सइअंतरद्धा । ६ ॥ सूत्रम् ॥ उपभोगपरिभोगवए दुविहे पनत्ते, तंजहा-भोअणओ कम्मओ अ । भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तंजहा-सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पलि20 ओसहिभक्खणया। कम्मओ गं समणोवासएणं इमाई पन्नरस कम्मादाणाई जाणियव्या, तंजहा-इंगालकम्मे Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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