SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः ] [ २४५ विहिगहिनं विहिभुत्तं अइरेगं भत्तपाण भोत्तव्वं । विहिगहिए विहिभुत्ते एत्थ य चउरो भवे भंगा ।। ९२ ।। कागसियालक्खइयं दविअरसं सम्वनो परामट्ठ। एसो उ भवे अविही जहगहि भोयणमि (भुंजओ य) विही ६३ 5 सा पुण जायमजाया जाया मूलोत्तरेहि उ असुद्धा । लोमातिरेगगहिया अभिओगकया विसकया वा ।। ६४ ॥ एगंतमणावाए प्रचित्ते थंडिले गुरुवइट। आलोए एगपुजं तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥६५ ।। एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरुवइ8 ।। 10 पालोए दुन्नि पुजा तिट्ठाणं सावणं कुज्जा ॥६६ ।। दुविहो खलु अभिगो दव्वे भावे य होइ नायवो। दव्यंमि होइ जोगो विज्जा मंता य भावंमि ।। ६७ ।। विज्जाए होअगारी अचियत्ता सा य पुच्छए चरिअं । अभिमंतणोदणस्स उ अणुकंपणमुझणं च खरे ॥ ९८ ।। 15 बारस्स पिट्टणंमि प्र पुच्छण कहणं च होअगारीए। सिट्ठे चरियादंडो एवं दोसा इहंपि सिया ॥ ९९ ।। जोगंमि उ अविरइया अझुववन्ना सरूवभिवखुमि ।। कडजोगमणिच्छंतस्स देइ भिक्खं असुभभावे ।। ६०० ।। संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । 20 तेसिपि असुमभावो पच्छा उ ममापि उज्झयणा ।। ६०१ ।। एमेव विसकयंमिवि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । गंधाई विनाए उज्झगमविही सियालवहे ॥ ६०२ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy