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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमतो ओघनियुक्तिः
अहवा न कुज्ज आहारं, हिं ठाणेहिं संजए। पच्छा पच्छिमकालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं ।। ८१ ।। एएहिं छहिं ठाणेहि, अणाहारो य जो भवे ।
धम्मं नाइएकमे भिक्खू, झाणजोगरपो भवे ।। ८२ । 5 भुजंतो आहारं गुणोवयारं सरीरसाहारं ।
विहिणा जहोवइ8 संजमजोगाण वहणट्ठा ।। ८३ ।। भत्त (भुत्तु)ट्ठियावसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो । अपहुप्पत्ते अन्नपि छोढुं ता लंबणे ठवए ॥ ८४ ॥
संदिट्ठा संलिहिउं पढम कप्पं करेइ कलुसेणं । 10 तं पाउं मुहमासे बितियच्छदवस्स गिण्हति ।।८५ ।।
दाऊण बितियकप्पं बहिआ मज्झट्टिओ उ दवहारी। तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोग्हं तु आयमणं ॥८६ ।। होज्ज सिआ उद्धरियं तत्थ य प्रायंबिलाइणो हुज्जा । पडिदंसिप संदिट्ठो वाहरइ तो चउत्थाई ।। ८७ ।। मोहचिगिच्छ विगिट्ठ गिलाण अत्तट्टियं च मोत्तणं । से से गंत्तुं भणई आयरिया वाहरंति तुमं ॥८८ ।। अपडिहणतो आगतु वंदिउं भणइ सो उ आयरिए । संदिसह भुंज जं सरति तत्तियं सेस तस्सेव ।। ८९ ।। अभणंतस्स उ तस्सेव सेसनो होइ सो विवेगो उ।। भणिओ तस्स उ गुरुणा एसुवएसो पवयणस्स ॥ ५९० ।। भुत्तंमि पढमकप्पं करेमि तस्सेव देति तं पायं । जावतिअंतिअ भणिए तस्सेव विभिचणे सेसं ॥ १ ॥
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