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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओधनियुक्ति।
अहव ण दोसीणं चिअ जायामो देहि दहि घयं खोरं । खीरे घयगुलपेज्जा थोवं थोवं च सव्वत्थ ।। १४६ ।। मज्झण्हि पउरभिक्खं परिताविअपिज्जजसपयकढियं ।
ओभट्ठमणोभट्ठ लब्भइ जं जत्थ पाउग्गं ॥ १४७ ।। 5 चरिमे परितावियपेज्जजूस प्राएस अतरणट्टाए ।
एक्के.क्कगसंजुत्तं भत्तट्ठ एक्कमेक्कस्स ।। १४८ ।। प्रोसह भेसज्जाणि अ कालं च कुले य दाणमाईणि । सग्गामे पेहित्ता पेहंति ततो परग्गामे ॥१४६ ।।
चोयगवयणं दीहं पणीयगहणे य नणु भवे दोसा । 10 जुज्जइ तं गुरुपाहुण-गिलाणगट्ठा न दप्पट्टा ॥ १५० ॥
जइ पुण खद्धपणीए अकारणे एक्स पि गिण्हेज्जा। तहि दोसा तेण उ अकारणे खद्धनिद्धाई ।। १५१ ।। एवं -रुइए थंडिल वसही देउलिअसण्णगेहमाईणि । पाओगमऽणुण्णवणा वियालणे तस्स परिकहणा ।। १५२ ।। जाव गुरूण य तुज्झ य केवइया ? तत्थ सागरेणुवमा । केवइकालेणेहिह ? सागार ठवंति अण्णेवि ।। १५३ ।। पुवट्ठि इच्छइ अहव भणिज्जा हवंतु एवइया । तत्थ न कप्पइ वासो असई खेत्ताणऽणुन्नाओ ॥ १५४ ।।
सक्कारो सम्माणो भिक्खग्गहणं च होह पाहुणए। 20 जइ जाणउ वसइ तहिं साहम्मिप्रवच्छलाऽऽणाई ।। ५५ ।।
जइ तिनि सव्वगमणं एसु न एसुत्ति दोसुवि अ दोसा। अण्णपहेणगुणता निययावासोऽह मा गुरुणो ॥ ५६ ।।
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