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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्री पिण्डनियंक्तिः
बज्झइ य जेण कम्मं सो सम्बो होइ अप्पसत्थो उ । मुच्चइ य जेण सो उण पसत्थओ नवरि विन्नेप्रो ॥६४।। दसणनाणचरित्ताण पज्जवा जे उ जत्तिया वावि ।
सो सो होइ तयक्खो पज्जवपेयालणा पिंडो॥ ६५ ।। 5 कम्माण जेण भावेण अप्पगे चिणइ चिक्कणं पिडं ।
सो होइ भावपिंडो पिंडयए पिंडणं जम्हा ।। ६६ ।। दव्वे अच्चित्तेणं भावमि (वे य) पसत्थएणिहं पगयं । उच्चारियस्थ-सरिसा सोसमइ (ससा उ)विकोवणट्टाए ।।६७।
आहारउवाहि-सेज्जा पसत्थ-पिंडस्सुवग्गहं कुणइ । 10 आहारे अहिगारो अहि ठाणेहि सो सुद्धो ।। ६८ ।।
निव्वाणं खलु कज्जं नाणइतिगं च कारणं तस्स । निव्वाणकारणाणं च कारणं होइ आहारो ॥ ६९ ।। जह कारणं तु तंतू पडस्स तेसि च होंति पम्हाई ।
नाणइतिगस्सेवं प्राहारो मोक्खनेम (मि) मस्स ।। ७० ।। 15 जह कारणमणुवहयं कज्ज साहेइ अविकलं नियमा।
मोक्खक्खमाणि एवं नाणाईणि उ अविगलाई ।। ७१ । संखेवपिडियत्थो एवं पिंडो मए समक्खाम्रो । फुडवियड-पायडत्थं वोच्छामी एसणं एत्तो ।। ७२ ।।
एसण गवेसणा मगाणा य उग्गोवणा य बोद्धव्वा । 20 एए उ एसणाए नामा एगढ़िया होंति ॥ ७३ ।।
नामं ठवणा दविए भावंमि य एसणा मुणेयन्वा । दवे भावे एक्केक्कया उ तिविहा मुणेयया ॥ ७४ ।।
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