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________________ (३) श्री पिण्डनियुक्तिः ] [ २७३ जम्मं एसइ एगो सुयस्स अन्नो तमेसए नहूँ । सत्तु एसइ अन्नो पएण अन्नो य से मच्चु ॥ ७५ ॥ एमेव सेसएसुवि चउप्पयापय अचित्तमीसेसु । जा जत्थ जुज्जए एसणा उ तं तत्थ जोएज्जा । ७६ ।। 5 भावेसणा उ तिविहा गवेस-गहणेसणा उ बोद्धव्वा । गासेसणा उ कमसो पन्नत्ता वीयरागेहिं ।। ७७ ।। प्रगविटुस्स उ गहणं न होइ न य अगहियस्स परिभोगो। एसतिगस्स एसा नायव्वा आणुपुत्धी उ ।। ७८ ।। नाम ठवणा दविए भावंमि गवेसणा मुणेयव्वा । 10 दव्वंमि कुरंगगया उग्गम-उप्पायणा भावे ।। ७६ ॥ जियसत्त -देवि-चित्तसभ-पविसणं कणगपिटु-पासणया। दोहल-दुब्बल-पुच्छा कहणं आयणा य पुरिसाणं ।। ८० ॥ सोवन्निसरिसमोयग-ठव (कर) णं सोवनिरुक्खहे?सु । आगमरण कुरंगाणं पसत्थ अपसस्थ उवमा उ ।। ८१ ।। विइप्रमेयं कुरंगाणं, जया सीवन्नि सीयइ । पुरावि वाया वायंता, न उणं पुंजकपुजका ।। ८२॥ हत्थिगहणं गिम्हे परहहि भरणं च सरसोणं । अच्चुदएण नलवणाअहि (आ) रूढा गयकुलागमणं ।। ८३ ॥ विइयमेयं गजकुलाणं, जया रोहंति नलवणा । 20 अन्नयावि झांति हदा (झरा) न य एवं बहुओदगा ॥४॥ उग्गम उग्गोवण मग्गणा य एगट्ठियाणि एयाणि ।। नाम ठवणा दविए मामि य उग्गमो होइ ।। ८५ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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