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४- प्रतिक्रमणाध्ययनम् :: ९ - पारिष्ठापनिका नियुक्तिः ] [ १३३
।। २० ।।
तिविहो य होइ जड्डो भासा सरीरे य करणजड्डो य । भासाजड्डो तिविहो जलमम्मण- एलमूओ य दंसणनाणचरिते तवे य समिईसु करणजोए य । उवदिट्ठपि न गेण्हइ जलमूओ एलमूओ य ।। २१ ।। 5 णाणायट्टा दिक्खा भासाजडो अपच्चलो तस्स |
सोय बहिरो य नियमा गाहण उड्डाह अहिगरणे ।। २२ ।। तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे य होइ वंदणए । एएहिं कारणेहिं जड्डस्स न कप्पइ दिक्खा ।। २३ ।। अद्धा पलिमंथो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो य ।
10 दोसा सरीरजड्डे गच्छे पुण सो अणुण्णाओ ।। २४ ।। उड़दुस्सासो अपरक्कमो य गेलन्नलाघवग्गि अहिउदए । जड्डस्स य आगाढे गेलण्ण असमाहिमरणं च ।। २५ ।। सेएण कक्खमाई कुत्था धुवणुप्पिलावणा पाणा । नत्थि गलओ य चोरो निंदिय मुंडाइ पवाए य ।। २६ ।। 15 इरियासमिई भासेसणा य आयाणसमिइगुत्तीसु ।
नवि टाइ चरणकरणे कम्मुदएणं करणजड्डो ।। २७ ।। एसोविन दिविखज्जइ उस्सग्गेणमह दिक्खिओ होज्जा । कारणगएण केणइ तत्थ विहि उवरि वोच्छामि ॥ २८ ॥ मोत्तुं गिलाणकज्जं दुम्मेहं पडियरइ जाव छम्मासा |
20 एक्केक्के छम्मासा जस्स व दट्टु विगिंचणया ।। २६ ।। पुण करणे जड्डो उक्कोसं तस्स होंति छम्मासा | कुलगण संघनिवेयण एवं तु विहितहि कुज्जा ।। ३० ।।
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