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________________ (६) श्री प्राचराङ्गनियुक्तिः ] [ ४३५ उवओगजोगप्रझवसाणे वीसुच लद्धि (प्रोदइया)णं उदया। अट्ठविहोदय लेसा सन्नुसासे कसाए प्र॥५७ ।। लक्षणमेवं चेव उ पयरस्स असंखभागमित्ता उ । निक्खमणे य पवेसे एगाईयावि एमेव ॥ ५८ ।। 5 निक्खमपवेसकालो समयाई इत्थ आवलीभागो। अंतोमुहत्तऽविरहो उदहिसहस्साहिए दोन्नि ।। ५६ ॥ दारं ॥ मंसाईपरिभोगो सत्थं सत्थाइयं अणेगविहं । सारीरमाणसा वेयणा य दुविहा बहुविहा य ।।१६०॥ दारं ॥ मंसस्स केइ अट्ठा केइ चम्मस्स केइ रोमाणं । 10 पिच्छाणं पुच्छाणं दंताणऽट्ठा वहिज्जति ।। ६१ ॥ केई वहति अट्ठा केइ अणट्टा पसंगदोसेणं । कम्मपसगपसत्ता बंधति वहति मारंति ।। ६२ ।। सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । एवं तसकायंमी निज्जुत्ती कित्तिया एसा ॥ १६३ ।। 15 ॥१-७॥ अथ प्रथमाध्ययने सप्तमवायुकायोद्देशकः॥ वाउस्सऽवि दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थेय ।। १६४ ।। दुविहा य वाउजीवा सुहुमा तह बायरा उ लोगंमि । सुहुमा य सबलोए पंचेव य बायरविहाणा ।। ६५ ।। 20 उक्कलिया मंडलिया गुंजा घणवाय सुद्धवाया य । बायरवाउविहाणा पंचविहा वणिया एए ।। ६६ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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