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५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः]
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संवरियासवदारा अध्वावाहे अकंटए देसे । काऊण थिरं ठाणं ठिओ निसन्नो निवन्नो वा ।। ७९ ।। चेयणमचेयणं वा वत्थु प्रवलंबिउ घणं मणसा।
झायइ सुअमत्थं वा दवियं तप्पज्जए वावि ।। १४८० ।। 5. तत्थ उ भणिज्ज कोई झाणं जो माणसो परीणामो ।
तं न हवइ जिणदिट्ट झाणं तिविहेवि जोगमि ।। ८१ ॥ वायाईधाऊणं जो जाहे होइ उक्कडो धाऊ । कुविओत्ति सो पच्च इ न य इयरे तत्थ दो नस्थि ।। ८२ ।।
एमेव य जोगाणं तिण्हवि जो जाहि उक्कडो जोगो। 10 तस्स तहिं निद्देसो इयरे तस्थिक्क दो व नवा ।। ८३ ।।
काएविय प्रज्झप्पं वायाइ मणस्स चेव जह होइ । कायवयमणोजुत्तं तिविहं प्रज्झप्पमाहंसु ।। ८४ ।। जइ एगग्गं चित्तं धारयओ वा निरंभप्रो वावि । झाणं होइ नणु तहा इअरेसुवि दोसु एमेव ।। ८५ ।। देसियदसियमग्गो वच्चंति नरवई लहइ सह । रायत्ति एस वच्चइ सेसा अणुगामिणो तस्स ।। ८६ ।। पढमिल्लुअस्स उदए कोहस्सिअरे वि तिन्नि तत्थस्थि । न य ते ण संति तहियं न य पाहन्नं तहेयंमि ।। ८७ ।।
मा मे एजउ काउत्ति अचल प्रो काइनं हवइ झाणं । 20 एमेध य माणसियं निरुद्धमणसो हवइ झाणं । ८८ ॥
जह कायमणनिरोहे झाणं वायाइ जुज्जइ न एवं । तम्हा वई उ झाणं न होइ को वा विसेसुत्थ ? ॥८६ ।।
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