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________________ १ सामायिकाध्ययनम् १-पीठोका" ] [ ७ वुड्डी वा हाणी वा, चउठिवहा होइ खित्तकालाणं । दव्वे सु होइ दुविहा, छविह पुण पज्जवे होइ ॥५९।। फड्डा य प्रसंखिज्जा, संखेज्जा यावि एगजीवस्स । एकफडडुवओगे, नियमा सम्वत्थ उवउत्तो ॥६० ।। फड्डा य प्राणुगामी, प्रणाणुगामी य मीसगा चेव । पडिवाइ अपडिवाई, मीसो य मणुस्सतेरिच्छे ।। ६१ ।। बाहिरलंभे भज्जो, दवे खित्ते य कालभावे य । उप्पा पडिवाओऽवि य, तं उभयं एगसमएणं ।। ६२ ॥ प्रभितरलद्धीए उ तदुभयं नस्थि एगसमएणं । 10 उप्पा पडिवाओऽवि य, एगयरो एगसमएणं ।। ६३ ।। दव्याओ असंखिज्जे संखेज्जे आवि पज्जवे लहइ । दो पज्जवे दुगुणिए, लहइ य एगाउ दवाउ ।। ६४ ।। सागारमणागारा, प्रोहिविभंगा जहण्णमा तुल्ला। उवरिमगेवेज्जेसु उ, परेण प्रोही असंखिज्जो ।। ६५ ।। 15 नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा ति । पासंति सम्वो खलु, सेसा देसेण पासंति ॥ ६६ ।। संखिज्जमसंखिज्जो, पुरिसमबाहाइ खित्तओ प्रोही। संबद्धमसंबद्धो, लोगमलोगे य संबद्धो ।। ६७ ।। गइ नेरइयाईश्रा, हिट्ठा जह वणिया तहेव इहं । 20 इड्डी एसा वणिज्जइत्ति तो सेसियाओऽवि ॥ ६८ ।। आमोसहि विप्पोसहि, खेलोसहि जल्लमोसही चेव । संभिन्नसो उज्जुमइ, सम्वोसहि चेव बोद्धव्वो।। ६९ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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