________________
५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११-कायोत्सर्गनियुक्तिः ]
[ १६९
वंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ताव काय ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥ सूत्रम् ॥ काउस्सग्गंमि ठिओ निरेयकाओ निरुद्धवइपसरो।
जाणइ सुहमेगमणो मुणि देवसियाइअइयारे ॥१॥ 5 परिजाणिऊण य जओ संमं गुरुजणपगासणेणं तु ।
सोहेइ अप्पगं जो जम्हा य जिणेहिं सो भणिओ ॥२॥(प्र०) काउस्सग्गं. मुक्खपहदेसियं जाणिऊण तो धीरा । दिवसाइयारजाणणट्टयाइ ठायंति उस्सग्गं ॥ १५११ ।।
सयणा-सणण्णपाणे चेइय जइ सेज्ज काय उच्चारे । Itv समिती भावण गुत्ती वितहायरणमि अइयारो ॥ १२ ॥
गोसमुहणंतगाई पालोए देसिए य अइयारे । सत्वे समाण इत्ता हियए दोसे ठविज्जाहि ॥ १३ ॥ काउंहिअए दोसे जहक्कम जा न ताव पारेइ ।
ताव सुहमाणुपाणू धम्मे सुक्कं च झाइज्जा ।। १४ ॥ 15 देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे तहेव वरिसे य ।
इक्किक्के तिन्नि गमा नायव्वा पंचसेएसु ।। १५ ।। प्राइमकाउस्सग्गे पडिकमणे :ताव काउ सामइयं । तो कि करेह बीयं तइयं च पुणोऽवि उस्सग्गे ? ॥१६ ।।
समभावमि ठियप्पा उस्सग्गं करिय तो पडिक्कमइ । 20 एमेव य समभावे ठियस्स तइयं तु उस्सग्गे ॥ १७ ।।
सज्झायझाणतवओसहेसु उवएसथुइपयाणेसु । संतगुणकित्तणेसु अ न हुति पुणरुत्तदोसा उ ॥ १८ ॥
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org