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[ नियुक्तिसंग्रहा:: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः
इय आलोइय-पट्टविन-गालिए मंडलीइ सट्टाणे । सज्झायमंगलं कुणइ जाव सम्वे पडिनियत्ता ॥५५९ ।। कालपुरिसे व प्रासज्ज मत्तए पक्खिवित्तु तो पढमा।
अहवावि पडिग्गहगं मुयंति गच्छं समासज्ज ॥ ५६० ।। 5 चित्तं बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण आयरिअं ।
जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडलोथेरो ॥५६१ ।। जइ लुद्धो राइणिप्रो होइ प्रलुद्धोवि जोऽवि गीयत्थो! ओमोवि हु गीयत्थो मंडलिराइणि प्रलुद्धो उ ।।५६२ ।।
ठाणदिसि पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरू।। 10 सो चेव य आलोगो नारणत्तं तद्दिसाठाणे ।। ५६३ ।।
जो पुण हवेज्ज खमनो अतिउच्चामो व सो बहि ठाइ । पढमसमुट्ठिो वा सागारियरक्खणट्ठाए ॥५६४ ।। एककेकस्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले ।
कट्ठिए व छुडभइ मा लेवकडा भवे वसही ।। ५६५ ।। 15 मंडलिभायणभोयण गहणं सोही य कारणुव्वरिते।
भोयणविही उ एसो भणिओ तेल्लुक्कसीहि ।। ५६६ ।। उग्गम-उप्पायणासुद्धं, एसणा दोसवज्जिनं । साहारणं अयाणंतो, साहू हवइ असारओ ॥ ५६७ ।। उग्गम-उपायणासुद्धं एसणा-दोसवज्जिनं । साहारणं वियाणंतो, साहू हवइ ससारओ ॥५६८ ।। उग्गम-उप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जि। साहारणं प्रयाणंतो, साहू कुणइ तेणियं ॥ ५६९ ॥
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