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________________ ३६४ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (५) श्रीउत्तराध्ययननियुक्तिः सोऊण तं भगवओ मिच्छायारस्स सो उवट्ठाइ । तन्नीसाए भयवं सीसाणं देइ अणुसिढेिं ।। ३०५ ।। परियट्टियलावणं चलंतसंधि मुयंतबिटागं । पत्तं च वसणपतं कालप्पत्तं मणइ गाहं ॥ ३०६ ।। 5 जह तुम्भे तह अम्हे तुम्भेवि प्र होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेइ पडतं पंडुरवत्तं किसलयाणं ।। ३०७ ।। नवि अस्थि नवि अ होही उल्लायो किसलपंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस कया भवियजणविबोहणट्ठाए ।। ३०८ ।। ॥ इति दशमाध्ययन नियुक्तिः॥ १० ॥ 10 ॥११॥ अथ एकादशबहुश्रुतपूजाध्ययननियुक्तिः ॥ बहु सुए पूजाए य, तिण्हंपि चउक्कओ य निक्खेवो । दवबहुगेण बहुगा जीवा तह पुग्गला चेव ।। ३०९ ॥ भावबहुएण बहुगा चउदस पुरवा अणंतगमजुत्ता। भावे खनोवसमिए खइयंमि य केवलं नाणं ॥ ३१० ॥ दव्वसुय पोंडयाइ अहवा लिहियं तु पुत्थयाईसुं । भावसुयं पुण दुविहं सम्मसुयं चेव मिच्छसुयं ॥ ११ ॥ भवसिद्धिया उ जीवा सम्मद्दिट्ठी उ जं अहिज्जति । तं सम्मसुएरण सुयं कम्मट्ठविहस्स सोहिकरं ।। १२ ।। मिच्छद्दिट्ठी जीवा अभवसिद्धी य जं अहिज्जति । 20 तं मिच्छसुएण सुय कम्मावाणं च तं भणियं ॥ १३ ॥ 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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