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________________ (२) श्रीमती ओधनियुक्तिः ] [ २३७ संसत्तं तत्तो चिज परिवेत्ता पुणो दवं गिण्हे । कारण मत्तयगहि पडिग्गहे छोढ पविसणया ॥५०४ ।। गामे य कालभाणे पहुच्चमाणे हवंति भंगट्ठा। काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए भयणा ॥ ५०५ ।। 5 अण्णं च वए गामं अण्णं भाणं व गेह सइ काले । पढमे बितिए छप्पंचमे य भय सेस य नियत्ते ।। ५०६ ।। नोसिठ्ठमागयाणं उव्वासिअ मत्तए य भूमितिअं। पडिलेहियमत्थमणं सेसऽथमिए जहन्नो उ ॥५०७ ॥ भुत्ते वियारभूमी गयागयाणं तु जह य ओगाहे । 10 चरमाए पोरिसीए उक्कोसो सेस मज्झिमओ ॥५०८ ।। पायपमज्जणनिसोहिया य तिनि उ करे पवेसंमि । अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेवो ॥ ५०९ ।। चउरंगुलमुहपत्ती उज्जुयए वामहत्थि रयहरणं । वोसटुचत्तदेहो काउस्सग्गं करेज्जाहि ॥५१० ॥ 15 पुवुदिढे ठाणे ठाउं चउरंगुलंतरं काउं। मुहपोत्ति उज्जुहत्थे वामंमि य पायपुछणयं ।। ५११ ।। काउस्सग्गंमि ठिो चिते समुयाणिए अईआरे । जा निग्गमप्पवेसो तत्थ उ दोसे मणे कुज्जा ।। ५१२ ॥ ते उ पडिसेवणाए अणुलोमा होति वियडणाए य। 20 पडिसेववियडणाए एस्थ उ चउरो भवे भंगा ॥ ५१३ ।। वक्खित्तपराहुत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोए । आहारं च करेंतो नीहारं वा जइ करेइ ।। ५१४ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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