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[नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती अोपनियुक्तिः
एमेव होइ पुरिसो दुगाइछट्ठाण-पज्जवसिएसुं। अपुमं तु तिमागाई सत्तमभागे प्रवसिते उ ॥ ९३ ।। दुविहो य होइ मावो लोइय लोउत्तरो समासेणं ।
एविककोवि य दुविहो पसत्थओ प्रप्पसत्थो य ॥ ६४ ।। 5 सभिलगा दो वणिाया गामं गंतूण करिसणारंभो।
एगस्स देहमंडणबाउसिआ भारिया अलसा ।। ९५ ।। मुहधोवरण दंतवणं प्रद्दागाईण कल्ल आवासं । पुवण्हकरणमप्पण उक्कोसयरं च मज्झण्हे ॥६६॥
तणकटुहारगाणं न देइ न य दासपेसवग्गस्स । 10 न य पेसणे निउंजइ पलाणि हिय हाणि गेहस्स ।। ९७ ।।
विइयस्स पेसवगं वावारे अन्नपेसणे कम्मे । काले देहाहारं सयं च उवजीवई इढ्ढी ॥ ९८ ।। धन्नबलरूवहेलं आहारे जो तु लाभि लभंते ।
अतिरेगं न उ गिण्हइ पाउग्गगिलाणमाईणं ॥ ९९ ।। 15 जह सा हिरण्णमाईसु परिहीणा होइ दुक्खाभागी।
एव तिगपरिहीणो साहू दुक्खस्स आभागी ॥ ५०० ।। प्रायरियगिलाणट्ठा गिण्ह न महंति एव जो साहू । वो वन्नरूवहेलं आहारे एस उ पसत्थे ॥५०१ ।। उग्गम-उप्पायण-एसरगाए बायाल होति अवराहा । सोहेउं समुयाणं पडुप्पन्ने वच्चए वसहि ॥ ५०२ ।। सुन्नघरदेउले वा असई य उवस्सयस्स वा दारे । संसत्तकंटगाई सोहेउमुवस्सगं पविसे ॥५०३ ॥
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