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५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११ कायोत्सर्गनयुक्तिः ]
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जइ ते चित्तं झाणं एवं झाणमवि चित्तमावन्न। तेन र चित्तं झाणं अह नेवं झाणमन्नं ते ।। १५०१ ।। नियमा चित्तं झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयत्वं ।
जह खइरो होइ दुमो दुमो य खइरो अखयरो वा ।।१५०२।। 5 अट्ट रुदं च दुवे झायइ झारगाई जो ठिमो संतो।
एसो काउस्सम्गो दुव्वुसिओ भावउ निसन्नो ।। १५०३ ।। धम्मं सुषकं च दुवे झायइ झाणाई जो निसन्नो प्र। एसो काउस्सग्गो निसनुसिओ होइ नायवो ।। १५०४ ।।
धम्म सुक्कं च दुवे नटि झायइ नवि य अट्टरुद्दाई। 10 एसो काउस्सग्गो निसण्णओ होइ नायवो ॥ १५०५ ।।
अट्ट रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ नाम ॥१५०६ ।। धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाई जो निवन्नो उ।
एसो काउस्सग्गो निवनुसिओ होइ नायवो ॥ १५०७ ।। 15 धम्म सुक्कं च दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुद्दाइं ।
एसो काउस्सग्गो निवण्णओ होइ नायवो ॥ १५०८ ।। अट्ट रुदं च दुवे झायई झाणाइं जो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नो नाम ।। १५०९ ।।
अतरंतो उ निसन्नो करिज्ज तहविय सह निवन्नो उ। 20 संबाहुवस्सए वा कारणिय सहूवि य निसन्नो ।। १५१०॥
करेमि भंते ! सामाइयं । सव्वं सावज्जं जोग पञ्चक्खामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं
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