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________________ ५-कायोत्सर्गाध्ययनम् :: ११ कायोत्सर्गनयुक्तिः ] [ १६७ जइ ते चित्तं झाणं एवं झाणमवि चित्तमावन्न। तेन र चित्तं झाणं अह नेवं झाणमन्नं ते ।। १५०१ ।। नियमा चित्तं झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयत्वं । जह खइरो होइ दुमो दुमो य खइरो अखयरो वा ।।१५०२।। 5 अट्ट रुदं च दुवे झायइ झारगाई जो ठिमो संतो। एसो काउस्सम्गो दुव्वुसिओ भावउ निसन्नो ।। १५०३ ।। धम्मं सुषकं च दुवे झायइ झाणाई जो निसन्नो प्र। एसो काउस्सग्गो निसनुसिओ होइ नायवो ।। १५०४ ।। धम्म सुक्कं च दुवे नटि झायइ नवि य अट्टरुद्दाई। 10 एसो काउस्सग्गो निसण्णओ होइ नायवो ॥ १५०५ ।। अट्ट रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ नाम ॥१५०६ ।। धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाई जो निवन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निवनुसिओ होइ नायवो ॥ १५०७ ।। 15 धम्म सुक्कं च दुवे नवि झायइ नवि य अट्टरुद्दाइं । एसो काउस्सग्गो निवण्णओ होइ नायवो ॥ १५०८ ।। अट्ट रुदं च दुवे झायई झाणाइं जो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नो नाम ।। १५०९ ।। अतरंतो उ निसन्नो करिज्ज तहविय सह निवन्नो उ। 20 संबाहुवस्सए वा कारणिय सहूवि य निसन्नो ।। १५१०॥ करेमि भंते ! सामाइयं । सव्वं सावज्जं जोग पञ्चक्खामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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