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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः
आहाकम्मदारं भणियमियाणि पुरा समुद्दिट्ट । उद्देसियंति वोच्छं समासनो तं दुहा होइ ॥ १८ ।। मोहेण विभागेण य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे।
उद्दिट्ट कडे कम्मे एक्के क्कि चउक्कमो मेओ ॥ १६ ।। 5 जीवामु कहवि ओमे निययं मिक्खावि कदवई देमो। हंदि हु नत्थि अविन्नं भुज्जइ अकयं न य फलेई ।। २२० ।। सा उ अविसे सियं चिय मियंमि भत्तमि तंडुले छुहइ । पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तस्स भिक्खट्ठा ।। २१ ॥
छउमत्थोघुद्देसं कहं वियाणाइ ? चोइए भणइ । 10 उवउत्तो गुरू एवं मिहत्थसहाइचिट्ठाए ॥ २२ ॥
दिनाउ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ व गर्णति । देहि इओ मा य इमो अवणेह य एत्तिया भिक्खा ॥ २३ ॥ सद्दाइएसु साहू मुच्छं न करेज्ज गोयरगओ य । एसणजुत्तो होज्जा गोणीवच्छो गवत्तिव्व ॥ २४ ॥ ऊसव मंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नवि य चारि । वणियागम अवरण्हे वच्छगरडणं खरंटणया ॥ २५ ॥ पंचविह-विसयसोक्खक्खणी वहू समहियं गिहं तं तु । न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढिम्रो गवत्तंमि ।। २६ ।।
गमणागमणुक्खेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो । 20 एसणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो ॥ २७ ॥
महईए संखडीए उवरियं कूरवंजणईयं । पउरं दळूण गिही भणइ इमं देहि पुण्णट्ठा ॥ २८ ॥
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