SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः आहाकम्मदारं भणियमियाणि पुरा समुद्दिट्ट । उद्देसियंति वोच्छं समासनो तं दुहा होइ ॥ १८ ।। मोहेण विभागेण य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे। उद्दिट्ट कडे कम्मे एक्के क्कि चउक्कमो मेओ ॥ १६ ।। 5 जीवामु कहवि ओमे निययं मिक्खावि कदवई देमो। हंदि हु नत्थि अविन्नं भुज्जइ अकयं न य फलेई ।। २२० ।। सा उ अविसे सियं चिय मियंमि भत्तमि तंडुले छुहइ । पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तस्स भिक्खट्ठा ।। २१ ॥ छउमत्थोघुद्देसं कहं वियाणाइ ? चोइए भणइ । 10 उवउत्तो गुरू एवं मिहत्थसहाइचिट्ठाए ॥ २२ ॥ दिनाउ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ व गर्णति । देहि इओ मा य इमो अवणेह य एत्तिया भिक्खा ॥ २३ ॥ सद्दाइएसु साहू मुच्छं न करेज्ज गोयरगओ य । एसणजुत्तो होज्जा गोणीवच्छो गवत्तिव्व ॥ २४ ॥ ऊसव मंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नवि य चारि । वणियागम अवरण्हे वच्छगरडणं खरंटणया ॥ २५ ॥ पंचविह-विसयसोक्खक्खणी वहू समहियं गिहं तं तु । न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढिम्रो गवत्तंमि ।। २६ ।। गमणागमणुक्खेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो । 20 एसणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो ॥ २७ ॥ महईए संखडीए उवरियं कूरवंजणईयं । पउरं दळूण गिही भणइ इमं देहि पुण्णट्ठा ॥ २८ ॥ 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy