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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः
आयंबिलमणायंबिल चउथा(द्धा) बालवुड्डसहुअसहू । अहिंडियहिंडियए पाहुणयनिमंतणाऽऽवलिया ।। २४ ।। विहिगहियं विहिभुत्तं उव्वरियं जं भवे असणमाई ।
तं गुरुणाऽणुनायं कप्पइ आयंबिलाईणं ॥ 5 विहिगहिनं विहिभुत्तं तह गुरूहि जं भवे अणुनायं ।
ताहे वंदणपुव्वं भुजा से संदिसायेउं ।। २५ ।। चउरो य हुँति भंगा पढमे भंगंमि होइ प्रावलिया। इत्तो अ तइयभंगो आवलिया होइ नायव्वा ॥२६ ।।
पच्चक्खाएण कया पच्चक्खावितएवि सूआए (उ)। 10 उभयवि जाणगोयर चउभंगे गोणिदिळंतो ।। २७ ।।
मूलगुणउत्तरगुणे सन्वे देसे य तह य सुद्धीए।। पच्चक्खाणविहिन्नू पच्चक्खाया गुरू होइ ।। २८ ।। किइकम्माइविहिन्न उवओगपरो अ असढभावो अ ।
संविग्गथिरपइन्नो पच्चक्खावितओ भणिओ ॥ २९ ।। 15 इत्थं पुण चउभंगो (गो) जाणगइअरंमि गोणिनाएणं ।
सुद्धासुद्धा पढमंतिमा उ सेसेसु अ विभासा ॥ १६३० ।। दवे भावे 4 दुहा पच्चक्खायवयं हवइ दुविहं ! । दव्वंमि प्र असणाई अनाणाई य भावंमि ॥ ३१ ॥
सोउं उठ्ठियाए विणीयऽवक्खिसतदुवउत्ताए । 20 एवंविहपरिसाए पच्चक्खाणं कहेयव्वं ॥ ३२ ॥
आणागिज्झो अत्थो प्राणाए चेव सो कहेयव्यो। दिळंति उ दिळंता कहणविहि विराहणा इयरा । ३३ ।।
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