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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (२) श्रीमती ओघनियुक्तिः
तम्हा सया विसुद्धं परिणामं इच्छया सुधिहिएणं । हिंसाययणा सम्वे परिहरियम्बा पयत्तेणं ॥ ५६ ।। वज्जेमित्ति परिणओ संपत्तीए विमुच्चई वेरा ।
अविहितोऽवि न मुच्चइ किलिट्ठभावोत्ति वा तस्स ।। ६० ।। 5 पढमबिइया गिलाणे तइए सण्णी च उत्थ साहम्मी। पंचमियंमि अ वसही छ? ठाणट्ठिओ होइ ॥ ६१ ।। एहिअपारत्तगुणा दुन्नि य पुच्छा दुवे य साहम्मी। तत्थेक्केक्का दुविहा चउहा जयणा दुहेककेक्का ॥ ६२ ।।
इहलोइआ पवित्ती पासणया तेसि संखडी सड्ढो । 10 परलोइआ गिलाणे चेइय वाई य पडिपीए ॥ ६३ ।।
अविहिपुच्छा अस्थित्थ संजया ? नस्थि तत्थ समणीओ। समणीसु अता नत्थी संका य किसोरवडवाए ॥ ६४ ।। सड्ढसु चरिअकामो संका चारी य होइ सड्डीसु। चे इयघरं व नस्थिह तम्हा उ विहीइ पुच्छेज्जा ।। ६५ ।। गामदुवारभासे अगडसमोवे महाणमझे वा । पुच्छेज्ज सयं पक्खा विआलणे तस्स परिकहणा ।। ६६ ॥ निस्संकिअ थूभाइसु काउ गच्छेज्जा चेइअघरं तु । पच्छा साहुसमीवं तेऽवि अ संभोइया तस्स ॥ ६७ ।।
निक्खविउं किइकम्मं दीवणऽणाबाह पुच्छण सहाओ। 20 गेलण्ण विसज्जणया अविसज्जुवएस दा(जा)वणया ।।६८।।
पुणरवि अयं खुभिज्जा प्रयाणगा मो स वा भणिज्ज संचिक्खे । उभओऽवि अयागंता वेज्जं पुच्छंति जयणाए ॥ ६९ ।।
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