________________
२९० ]
[ नियुक्तिसंग्रह: : : ( ३ ) श्रीपिण्डनिर्युक्तिः
चोयग ! इंधणमाईहि चउहिवी सुहुमपूइयं होइ । पनवणामित्तमियं परिहरणा नत्थि एयस्स ।। ६४ ।। सज्झमसज्भं कज्जं सज्यं साहिज्जए न उ प्रसज्यं । जो उ प्रसज्यं साहइ फिलिस्सइ न तं च साहेई ।। ६२ ।। 5 आहाकम्मिय भायणपरफोडण काय ( उ ) श्रयए कप्पे । गहियं तु सुहुमपूई थोषणमाईहि परिहरणा ।। ६३ ।। धोयपि निरावयवं न होइ श्राहच्च कम्म गहणंमि ।
न य अद्दव्वा उ गुणा भन्नई सुद्धी कओ एवं ? ।। ६४ ।। लोएवि असुगंधा विपरिणया दूरओ न दूति ।
नय मारंति परिणया दूरगया श्रवि विसावयवा ।। ६५ ।। सेसेहि उ दहि जावइयं फुसइ तत्तियं पूई । लेवेहिँ तिहि उ पूई कप्पइ कप्पे कए तिगुणे ॥ ६६ ॥ इंधणमाई मोत्तुं चउरो सेसाणि होंति दव्वाई । तेसि पुण परिमाणं तयप्पमाणाउ आरब्भ ।। ६७ ।। 15 पढमदिवसंमि कम्मं तिनि उ दिवसाणि पूइयं होइ ।
पुईसु तिसु न कप्पइ कप्पइ तइम्रो जया कप्पो ।। ६८ ।। समणकडाहाकम्मं समरगाणं जं कडेण मीसं तु । श्राहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ ॥ ६६ ॥ सस्स थेवदिवसेस संखडी आसि संघभत्तं वा । 20 पुच्छितु निउणपुच्छं संलावाओ वडगारीणं ।। २७० ।। मीसज्जायं जावंतियं च पासंडिसाहुमीसं च ।
सहसंतरं न कप्पइ कप्पs कप्पे कए तिगुणे ॥ ७१ ॥
10
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org