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________________ २] [ नियुक्तिसंग्रहः पुट्ट सुइ सई रूवं पुण पासई प्रपुटुंतु । गंधं रसं च फासं च बद्धपुट्ट वियागरे ॥५॥ भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मोसयं सुणई । वीसेढी पुण सइं. सुणेइ नियमा पराधाए ।॥ ६ ॥ गिण्हइ य काइएणं, निस्सरइ तह वाइएगा जोएणं । एगंतरं च गिण्हइ, निसिरइ एगंतरं चेव ।।७।। तिविहंमि सरीरंमि उ, जीवपएसा हवंति जीवस्स । जेहि उ गिण्हइ गहणं, तो भासइ भासओ भासं ।। ८ ।। पोरालियवेउम्वियामाहारो (रतो उ) गिण्हई मुय इ मासं । 10 सच्चं सच्चामोसं मोसं च असच्चमोसं च ॥ ६ ॥ काहिं समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होइ फुडो। लोगस्स य क इभागे, कहभागो होइ भासाए ? ।। १० ।। चहि समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होइ फुडो। लोगस्स य चरमंते चरमंतो होइ भासाए ॥११॥ 15 ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसरणा । सण्णा सई मई पण्णा, सव्वं आमिनिबोहियं ॥ १२ ॥ संतपयपरूवणया, दश्वपमाणं च खित्त फुसणा य । कालो अ अंतरं भाग, भावे अप्पाबहुं चेव ॥१३ ।। गइ इंदिए य काए, जोए वेए कसायलेसासु । 20 सम्मत्तनाणदंसण-संजयउवयोगआहारे ॥१४॥ भासगपरित्त पज्जत्त, सुहुमे सण्णी य होइ भवचरिमे । माभिणिबोहिअनाणं, मग्गिज्जइ एसु ठाणेसु ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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