________________
(७) श्री सूत्रकृताङ्गनियुक्तिः ।
। ४७५
तं नेइ पिता तोसे पुच्छण कहणं च वरण दोवारे । जाणाहि पाबिंब आगमणं कहण निग्गमणं ॥ १६६ ।। पडिमागतस्समीवे सप्परीवारा अभिक्ख पडिवयणं । भोगा सुताण पुच्छण सुतबंध पुण्णे य निग्गमणं ।। १९७ ।। रायगिहागम चोरा रायभया कहण तेसि दिक्खा य । गोसालभिक्खुबंभी तिदंडिया तावसे हि सह वादो॥ १९८ ॥ वादे पराइइत्ता सम्वेविय सरणमन्भुवगता ते । अगसहिया सव्वे जिणवीरसगासे निक्खंता ॥ १६६ ।।
ण दुक्करं वा णरपासमोयणं, गयस्स मत्तस्स वर्णमि रायं? । 10 जहा उवत्तावलिएण तंतुणा सुदुक्करं मे पडिहाइ मोयणं।२००। ॥२-७ ॥ अथ सप्तम-नालन्दीयाध्ययन-नियुक्तिः ॥
णामअलं ठवणअलं दत्व प्रलं चेव होइ भावप्रलं।। एसो अलसइंमि उ निक्लेवो चविहो होइ ॥ २०१ ॥
पज्जत्तीभावे खलु पढमो बीग्रो भवे अलंकारे । 15 ततितो उ पडिसेहे अलसद्दो होइ नायव्यो ।। २०२ ।।
पडिसेहणगारस्सा इस्थिसद्दे चेव अलसद्दी । रायगिहे नयरंमी नालंदा होइ बाहिरिया ।। २०३ ।। नालंदाए समिवे मणोरहे भासि इंदभूइणा उ ।
प्रज्झयणं उदगस्स उ एयं नालंद इज्जं तु ।। २०४ । 20 पासावच्चिज्जो पुच्छियाइओ प्रज्जगोयमं उदगो।
सावगपुच्छा धम्म सोउं कहियंमि उवसंता ।। २०५ ।।
॥ इति द्वितीय श्रुतस्कन्ध नियुक्तिः ॥ २ ॥ ॥ इति द्वितीय सूत्रकृताङ्गसूत्र-नियुक्तिः ॥२॥
Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org