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________________ १-सामायिकाध्ययनम् :: २-उपोद्घातनियुक्तिः । [ ४१ एयाई नामाइं पुटवभवे आसि वासुदेवाणं । इत्तो बलदेवाण जहक्कम कित्तइस्सामि ॥२॥ विस्सनंदी सुबुद्धी अ सागरदत्ते असोअ ललिए अ। वाराह धण्णसेणे अवराइअ रायललिए य ॥३॥ 5 संभूअ सुभद्द सुदंसणे अ सिज्जंस कण्ह गंगे अ। सागरसमुद्दनामे दमसेणे अ अपच्छिमे ।। ४ ।। एए धम्मायरिआ कित्तीपुरिसाण वासुदेवाण । पुन्वभवे आसीआ जत्थ निआणाइ कासी अ ।। ५ ।। महुरा य कणगवत्थू सावत्थी पोअणं च रायगिहं । 10 कायंदी मिहिलावि य वाणारसि हस्थिणपुरं च ।। ६ ।। गावी जूए संगामे इत्थो पाराइए अ रगमि । भज्जाणुरागगृट्ठी परइड्ढी माउगा इअ ॥७ ।। महसुक्का पाणय लंतगाउ सहसारओ अ माहिंदा । बंभा सोहम्म सणंकुमार नवमो महासुक्का ॥ ४॥ 15 तिपणेवणुत्तरेहिं तिण्णेव भवे तहा महासुक्का । अवसेसा बलदेवा अणंतरं बंभलोगचुआ ॥९॥ (प्रक्षि०) एगो य सत्तमाए पंच य छट्ठीए पंचमी एगो। एगो य चउत्थीए कण्हो पुण तच्चपुढवीए ।। १३ ।। अटुंतकडा रामा एगो पुण बंभलोगकप्पम्मि । 20 उववन्नु तओ चइउं सिज्झिस्सह मारहे वासे ॥ १४ ॥ अनिमाणकडा रामा सम्वेऽवि अ केसवा निमाणकडा। उगामी रामा केसव सव्वे महोगामी ॥१५॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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