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________________ २९४ [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः पागड-पयासकरणे कयंमि सहसा व अहवाणाभोगा। गहियं विगिचिऊणं गेण्हइ अन्नं अकयकप्पे ।। ३०५ ।। कीयगडंपि य दुविहं दवे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविह चित्ताई ।। ३०६ ।। 5 आयकियं पुण दुविहं दव्वे भावे य दव्य चुन्नाई । भावमि परस्सऽट्ठा अहवावी अप्पणा चेव ।। ३०७ ।। निम्मल्ल-गंधगुलिया-वन्नय-पोत्ताइ प्रायकय दवे । गेलन्ने उड्डाहो पउणे चडुगारि अहिगरणं ॥ ३०८ ।। वइयाइ मखमाई परभावकयं तु संजयट्ठाए । 10 उपायणा निमंतण कीडगडं अभिहडे ठविए । ३०६ ।। सागारि मंख छंदण पडिसेहो पुच्छ बहु गए वासे । करि दिसि गमिस्सह ? प्रमुइं तहि संथवं कुखइ ॥३१०।। दिज्जते पडिसेहो कज्जे घेत्थं निमंतणं जइणं । पुवगय प्रागएसु संछुहई एगगेहंमि ॥११ ।। 15 धम्मकह वाय खमणं निमित्त आयावणे सुयट्ठाणे । जाई कुल गण कम्मे सिप्पम्मि य भावकीयं तु ।। १२ ।। धम्मकहाअक्खित्ते धम्मकहाउट्टियाण वा गिण्हे । कति साहवो चिय तुमं व कहि ? पुच्छिए तुसिणी ।।१३।। कि वा कहिज्ज छारा दगसोयरिआ व अहवऽगारत्था । 20 कि छगलगगल-बलया मुडकुडुबी व कि कहए ? ॥ १४ ।। एमेव वाइ खमए निमित्त मायावगम्मि य वि विमासा । सुयठाणं गणिमाई अहवा वाणायरियमाई ॥३१५ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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