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[ नियुक्तिसंग्रहः :: (६) श्री प्राचाराङ्गनियुक्तिः
चइऊणं संकपयं सारपयमिणं दढेण चित्तव्वं । अस्थि जिओ परमपयं जयणा जा रागदोसेहि ॥ ४२ ॥ लोगस्स उ को सारो? तस्स य सारस्स को हवइ सारो ? ।
तस्स य सारो ? सारं जइ जाणसि पुच्छियो साह ।। ४३ ।। 5 लोगस्स सार धम्मो धम्मपि य नाणसारियं बिति ।
नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं ।। ४४ ।। चारो चरिया चरणं एगटुं वंजणं तहि छक्कं । दव्वं तु दारुसंकम जलथलचाराइयं बहुहा ।। ४५ ।। खित्तं तु जंमि खित्ते कालो काले हि भवे चारो। भावमि नाणदंसणचरणं तु पसत्थमपसत्थं ॥४६ ।। लोगे चउब्धिहमी समणस्स चउत्रि हो कहं चारो?। होई धिई अहिगारो विसेसमो खित्तकालेस ।। ४७ ।। पावोवरए अपरिग्गहे अ गुरुकुलनिसेवए जुत्ते । उम्मग्गवज्जए रागदोसविरए य से विहरे ॥ २४८ ॥
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15 ॥६॥ अथ धूताख्यषष्टाध्ययननियुक्तिः ॥
॥६-१॥ षष्ठाध्ययनप्रथमोद्देशकः॥
पढमे नियगविहुणणा कम्माणं बितियए तइयगंमि । उवगरणसरीराणं च उत्थए गारवतिगस्स ॥ २४९ ।।
उवसग्गा सम्माणयविहूपाणि पञ्चमंमि उद्देसे । 20 दव्वधुयं वत्थाई भावधुयं कम्म अविहं ॥ २५० ।।
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